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सुन्दर लघुकथा हुई है आ० राजेन्द्र गौड़ जी. बधाई स्वीकारें.
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेंदर जी!! सुंदर लघुकथा !
मोहरों का डब्बा और मौत ,ये तुलना जान है आपकी कथा की बहुत सुन्दर और सार्थक भाव लिए रचना बधाई आपको आदरणीय राजेंदर जी
"खेल के बाद सारे राजा -रानी व सभी मोहरे एक ही डिब्बे में साथ - साथ रहते है " -------वाह !!! बड़ी गज़ब की लघुकथा बनी है आदरणीय राजेंद्र जी। बिलकुल सही लिखा है आपने की खेल के बाद सब एक ही सामान हो जाते है।
" दुनिया एक रंगमंच और हम सब खेल खिलौने "
ढेरों बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए।
आदरणीय राजेन्द्र जी, /अरे , तु रोज़ नही देखता कैसे खेल के बाद सारे राजा -रानी व सभी मोहरे एक ही डिब्बे में साथ - साथ रहते है , जैसे जीवन में मौत के लिये सब एक समान / बहुत गहन बात कह गए आप अपनी इस लघुकथा के माध्यम से । सादर शुभकामनाएं ।
जीवन भी एक शतरंज ही तो है हम सब बस मोहरे हैं अंत में सबको एक ही जगह जाना है ...डिब्बे में बंद मोहरों की तरह ...बहुत ही सुन्दर अद्दभुत सन्देश छोड़ती लघु कथा ..हार्दिक बधाई आपको राजेंद्र कुमार जी .
आदरणीय राजेंद्र कुमार गौर जी इस कृति के लिए अनेको बधाइयाँ आपको
आदरणीय राजेन्द्र गौरजी, विशिष्ट शैली में जीवन के मर्म को सीखने को मिला. प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
शतरंज
" अरे ,अरे , ये क्या किया , तुमने जी ? "
"क्या -क्या किया , यही तो वो समय है , जिसके लिए इस मोहरे को मैदान में उतरने के लिए मैने इसे तैयार किया है । मेरे प्रमोशन का सवाल है यार ! "
" ओह , तो तुम अपने प्रमोशन के लिए उस 40 वर्षीय बिधुर के साथ 18 वर्ष की अपनी बहन से शादी कराओगे ? "
" हाँ , अब उसकी शर्त भी तो यही है । "
" उफ़ ! पर इतना अंतर कल को कुछ .....! "
" हाँ , हाँ , सब जानता हूँ पर मोहब्बत और जंग में सब जायज है । "
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