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दिल से शुक्रिया वीर भैया आपका
आदरणीय योगराज जी सर की टिप्पणी और आपकी लघुकथा को मिलाकर पढ़ लिया आदरणीया सविता जी, और मुझे एक ऐसी रचना पढने को मिली जो वास्तव में श्रेष्ठ है| सादर बधाई स्वीकार करें|
तहेदिल से आभार भैया आपका
सुंदर आंचलिक भाषा में कही अच्छे विषय के साथ पेश की गई लघुकथा के लिए बधाई
शुक्रिया आदरणीय आपका | सादर _/\_
जिन्दगी की शतरंज--
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सुबह तड़के उठकर वो घर से निकल गया , पत्नी और बच्ची सोये हुए थे । शहर में फैले तनाव की वज़ह से कल उसे कोई काम नहीं मिल पाया था और कल रात में जो बचा खुचा खाने का सामान था वो ख़त्म हो गया था । जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए वो आज सबसे पहले पहुँच जाना चाहता था ताकि आज तो काम मिल जाए और रात को परिवार को खाना खिला पाये । चुनावी पोस्टरों से अटी पड़ी सड़कें और गलियाँ उन जैसों के विकास की ही बात कर रही थी ।
अब उजाला फ़ैल गया था और वो मज़दूर मंडी में सबसे पहले पहुँच गया था । अब इंतज़ार था तो ठेकेदारों का जो आकर ले जाएँ काम पर । ठेकेदार तो आये लेकिन वो कर्म के नहीं , धर्म के थे और कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ियाँ सायरन बजाते घूमने लगीं । दंगे फ़ैल गए और कर्फ्यू का आदेश जारी हो गया था । घबराहट में वो भागा और गोलियों से बचते बचाते अपने घर सामने पहुँचा ।
सामने जलते हुए अपने घर को देखकर वो गश खाकर गिर पड़ा । जिन्दगी की शतरंज ने शह और मात दोनों दे दी थी ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत बहुत आभार आ कान्ता रॉय जी , बस कुछ लिखने का प्रयास किया है विषय पर
बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए
शह्र मात का खेल यूँ ही राजनीति के विसात पर चलता ही रहता | बढ़िया कथा भैया आप तो माहिर हैं भी कथाकार के रूप में ..सादर _/\_
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