आदरणीय साथियो,
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आपका आभार आ.तेजवीर जी।
आपका आभार आ.प्रतिभा जी।
आपका आभार आ.प्रतिभा जी।
अच्छी और सकारात्मक संदेश देती हुई लघुकथा है आ० मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई प्रेषित है.
गोष्ठी में प्रथम रचना हेतु बधाई स्वीकारें।
सुंदर सन्देश देती हुई इस अच्छी लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें।
पुनरागमं
"दादू. ..दादू!आप यहाँ बैठे हैं और मैं आपको नीचे ढूंढ रहा था।"
"क्यों ढूंढ रहे थे?" पोते की ओर बिना देखे दादा ने कहा।
"ब्रेकफास्ट के लिए।चलो दादू मम्मी बुला रही है।" दादा को चारपाई से उठाने की कोशिश करते हुए विभु ने कहा।
"मुझे नहीं जाना तुम जाओ।" उनकी आवाज़ में साफ नाराजगी दिख रही थी।
"पर क्यों ?चलो न मुझे भूख लगी है।" विभु ने आग्रह करते हुए कहा।
"न ...मैं नहीं जाऊंगा नीचे।अब से यहीं रहूंगा और यहीं सोया करुंगा।"
"अरे दादू , आप मम्मी से गुस्सा हो न?"
"मैं क्यों गुस्सा होने लगा किसी से!" मुँह बनाते हुए उन्होंने जवाब दिया।
"मैं सब जानता हूँ।आप मम्मी से गुस्सा हो न!" विभु ने भवें चढा कर कहा।
"परेशान न कर तू जा नीचे।" दादा की आवाज़ में झल्लाहट थी।
"पहले बताओ,मम्मी से गुस्सा हो न!!" विभु ने जिद करते हुए कहा।
"कोई काम है भी तेरी माँ को! जा नीचे,मुझे नहीं आना अब।खाना यहीं भिजा देगी तेरी माँ अगर जरूरी लगा तो।" जरूरी शब्द पर जोर देते हुए उन्होंने कहा और उठ कर बैठ गए।
"पर दादू, जब मैं बिस्तर गीला करता था तो मम्मी मुझे तो डाँटती थी न! आपको तो किसी ने डाँटा भी नहीं!" विभु कमर पर हाथ रखकर बोला।
"अरे तो क्या इस उम्र में डायपर पहनूंगा मैं!! बेअक्ल है तेरी माँ। जरा भी लिहाज नहीं कि क्या बोल रही थी।" दादा ने गुस्से से कहा।
"क्यों दादू? आप ही तो कहते थे न कि मम्मी को सब पता होता है तो उनकी बात गलत कैसे!"
"अरे हाँ लेकिन ..।" दादू कुछ सोचते हुए बोले।
"लेकिन क्या दादू?चिक्की को भी मम्मी डाइपर पहनाती है न ताकि उसके कपड़े खराब न हो! विभु ने आँखे मटका कर कहा।
"अरे लेकिन चिक्की छोट़ी बच्ची और मैं…।" दादा अपनी बात पूरी नहीं कर पाए।
"इसका मतलब आपने झूठ कहा था कि मम्मी को सब पता होता है!" विभु के पर प्रश्न उछल गया।
"नहीं…शैतान, मैंने झूठ नहीं बोला था।" वह पोते के सामने निरुत्तर हो गए।उन्हें समझ नहीं आया कि विभु की बात का क्या जवाब दे।
"तो फिर चलिए नीचें।मम्मी से गुस्सा नहीं होना चाहिए।" विभु ने उँगली से इशारा करते हुए कहा।
विभु की बात सुनकर दादाजी मुस्कुराने लगे और उसे गोदी में बैठा कर बोले।
"हाँ मैं अब भी कहता हूँ कि तेरी माँ मेरी भी माँ है और माँ से गुस्सा नहीं होते।चल नीचे नाश्ता ठंडा हो रहा होगा।"
सीढियों पर खड़ी विभु की मम्मी तेजी से नीचे की ओर दौड़ पड़ी।अपने दोनों बच्चों के लिए नाश्ता जो लगाना था।
(मौलिक व अप्रकाशित)
सच हैं... बुजुर्गों की बेवशी।
बेहतरीन रचना,बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय।
आदरणीया दिव्या जी, बहुत अच्छी और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. परिवार में वृद्धजनों की विवशता और परिवार की धुरी के ममत्व से गूंथी हुई हृदयस्पर्शी रचना. सादर
आभार सर।
आ. अच्छी कथा है, शीर्षक 'पुनरागमन' होना चाहिए !
नवीन विषय चुना है आपने, हार्दिक बधाई । थोड़ी सी और कसी जा सकती थी। वृद्ध बच्चों जैसे हो जाते हैं बच्चे नहीं हो जाते हैं।उनके आत्मसम्मान का ख्याल भी जरूरी है।रचना में बच्चे को दादा की समस्या का पता होना और उन्हें समझाना कुछ अजीब लगा।
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हार्दिक बधाई आदरणीय दिव्या जी। बेहतरीन लघुकथा।