परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 88वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मुज़फ्फर हनफी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो "
22 22 22 22 22 22 22 2
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अक्तूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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धन्यवाद आ. उस्मानी साहब
शुक्रिया आ. सुरेन्द्र भाई
शुक्रिया आ. दिनेश भाई
आद० निलेश भैया ,बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है --दो पंछी थे एक क़फ़स में सोच के दिल हलकान हुआ
दूजे पर क्या कुछ बीतेगी एक अगर उड़ जाए तो? --ये शेर तो बेहद पसंद आया |
आपको दिली मुबारक बाद |
मतले की बह्र पर अटक रही हूँ --गिरह वाले शेर में भी संशय है --वैसे भी सच कहूँ तो ये बह्र मेरी समझ से परे है
किन्तु जिस बह्र में मुजफ्फ़र हनफ़ी साहब ने लिखा है उसको देखते हुए मेरे मन में ये संशय उभरा .उन्हीने कहीं भी १२१२ नहीं लिया हाँ ११२ अवश्य लिया है .मैंने ऐसी बह्र जब भी ली है २११ या ११२ तक ही सीमित या सीधा सीधा फैलुन तक ही सीमित रही | हो सकता है मुझको इसकी विस्तृत जानकारी नहीं है |
बाकी आपके अशआर उनके भाव तो माशाल्लाह ...
.
आभार आ. दीदी...
जहाँ तक मैंने इस बहर को समझा है सुना है ...इस बहर में भी २२२ को १२१२ या २१२१ करने की छूट है ..
अंदलीब शादानी की ग़ज़ल है इसी ज़मीन पर उसका शेर देखें
....
शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो
शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी
आ. समर सर....
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद ..
आपके सुझाए मिसरे..
'दिल का क्या हो कोई करिश्मा ऐसा गर हो जाए तो' में कोई लिखने के बाद ऐसा का औचित्य नहीं रह जाता है ..
अगर ऐसा कुछ हो जाए तो... बिलकुल बोलचाल की भाषा के नज़दीक लगता है मुझे ....
अगर ऐसा हो जाय तो ...
ऐसा अगर हो जाय तो ...
.
//ऊला मिसरे में 'थे'और सानी मिसरे में "बीतेगी'कथ्य के लिहाज़ से कमज़ोर है// ....भूतकाल की किसी घटना का वर्णन था, थे से ही होगा लेकिन उसपर वर्तमान में आने वाले भविष्य पर चिन्तन को उसी काल में लिखना पड़ेगा ..पहले मिसरे में एक घटना का वर्णन है और दूसरे उससे जुडी संभावनाओं में से एक का ..जो अभी हुई नहीं हैं ..
आशा है मैं मंतव्य स्पष्ट कर पाया हूँ..
सादर
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