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बहुत बहुत शुक्रिया नीता जी। सुधीर जी को जो लिखा आपके लिए भी कॉपी कर दूँ :आपकी टिप्पणी से आश्वस्त हुआ कि मैं ऐसे मंच पर लघुकथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जहाँ लोगों को लघुकथा की समझ है।
साहित्य का एक ही मूल-मंत्र मैंने समझा है कि अच्छा पाठक ही एक दिन अच्छा लेखक बनता है ( और ख़राब लेखक क्या बनता है, यह बात फिर कभी )
मेरी रचना को इतना समय दे कर निष्पक्ष टिप्पणी दी,आभारी हूँ
आपकी रचना का शीर्षक ही पाठकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बहुत है आदरणीय प्रदीप नील जी| तीक्ष्ण तंज वाली चुस्त रचना हेतु कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
चंद्रेश जी , आपकी टिप्पणी ने बहुत संबल प्रदान किया।
प्रेम बनाए रखें
बहुत बहुत शुक्रिया सतविंदर भाई। आपने पकड़ा कि लघुकथा का मर्म कहाँ है। आपकी टिप्पणी से आश्वस्त हुआ कि मैं ऐसे मंच पर लघुकथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जहाँ लोगों को लघुकथा की समझ है। साहित्य का एक ही मूल-मंत्र मैंने समझा है कि अच्छा पाठक ही एक दिन अच्छा लेखक बनता है ( और ख़राब लेखक क्या बनता है, यह बात फिर कभी
मेरी रचना को इतना समय दे कर निष्पक्ष टिप्पणी दी,आभारी हूँ
खूब, चेहरा सब कुछ कह देता , और उसे पढ़ने में कोई समय भी नहीं लगता , आदरनीय प्रदीप जी , बधाई
जी मोहन जी। दिस्स ज्यांदा ,जे अक्ख होवे वेखण आल्ली।
तुस्सी मन मोह लेया , मोहन जी।
यह सच है कि लघुकथा में "अनकहा" कहने से भी अधिक कह जाया करता है I किन्तु यदि यही "अनकहा" पहेलियाँ बुझाने पर आ जाए तो चाँद के चेहरे पर दाग जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाने का डर बना रहता है I जबकि इसके बरअक्स सादगी और कुशल संप्रेषण लघुकथा की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं I ओवेरटेक करने वाले को झाँपड रसीद कर देने वाले अफसर का हाथ साइकिल वाले पर क्यों उठा ही रह गया तथा उसका चेहरा क्यों लटका रह गया, यह बात आपको तो पता होगी किन्तु बार बार पढने के बाद भी लघुकथा इसको साफ़ साफ़ ब्यान नहीं कर पा रही है I बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें I
रौ में आ कर साहब जी के हलक से दिल की बात निकल गयी . बेहद सुंदर चुस्त प्रस्तुति .बधाई आपको नपे तुले शब्दों आपने एक दम्भी की आकांक्षा को व्यक्त कर दिया .
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप जी !मैं भी आदरणीय सुनील वर्मा और आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी की राय से सहमत हूं!
आभारी हूँ तेजवीर जी। आप सरीखे धीर-गंभीर पाठक तथा लेखक जब तक हैं ,साहित्य जिन्दा रहेगा।
समय दे कर हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया
आपकी टिप्पणी से आश्वस्त हुआ कि मैं ऐसे मंच पर लघुकथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जहाँ लोगों को लघुकथा की समझ है।
साहित्य का एक ही मूल-मंत्र मैंने समझा है कि अच्छा पाठक ही एक दिन अच्छा लेखक बनता है ( और ख़राब लेखक क्या बनता है, यह बात फिर कभी )
मेरी रचना को इतना समय दे कर निष्पक्ष टिप्पणी दी,आभारी हूँ
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