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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-91

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 90 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-91

विषय - "लक्ष्य"

आयोजन की अवधि- 11 मई 2018, दिन शुक्रवार से 12 मई 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 मई 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय तस्दीक अहमद जी, बेहतीन ग़ज़ल, हर एक शेर उम्दा, बधाई हो !

जनाब ब्र जेंद्र नाथ साहिब  , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब विषयानुकूल बेहतरीन गजल लिखने के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये

जनाब डॉक्टर छोटे लाल साहिब,, हौसला अफज़ाई का शुक्रिया 

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'क़सदन फ़रेब हुस्न का खाने का लक्ष्य है'

इस मिसरे में दो बार 'का' शब्द खटक रहा है,मिसरा यूँ होना था:-

'क़सदन फ़रेब हुस्न से खाने का लक्ष्य है'

दूसरे शैर के ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'दर्स सिखाने' ।

तीसरे शैर के सानी मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'उस संग' ।

मुहतरम जनाब समर साहिब  आदाब , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

आदरणीय तस्दीक अहमद जी सादर 

         प्र्दत्त् विषय के अनुरूप लाजबाब ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय सादर बधाई प्रेषित है. 

जनाब सत्य नारायण साहिब, हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

कठिन शब्दों के अर्थ अंत में होने से बहुत सुविधा रही। इस बेहतरीन व सबक़ देती ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान  साहिब

भ्रष्ट की अभिलाषा  [ परम लक्ष्य है खूब कमाना ]

 

[ ताटंक छंद ]

......................                                               

 

काम गलत हो या अच्छा हो, चाहे धंधा काला हो।                                                        

अरबों का हो वारा न्यारा , रोज बड़ा घोटाला हो।।                                         

हर चैनल पर चर्चा हो, हर, अखबार में नाम मेरा।                                                      

चाहे हो जाये बदनामी,  रुके कभी न काम मेरा।।                                                                        

 

इज्ज़त खोकर जी लेंगे पर,  दौलत बिन जीना कैसा।                                                                        

मातु पिता भगवन से बढ़कर, भूमि भवन रुपया पैसा।।                                                           

वैसे भी भारत में भगवन, इज्ज़त हर दिन बिकती है।                                                         

धन गोरा हो या काला हो, धन से इज्ज़त मिलती है।।                                                     

 

कृपा करो प्रभु हम पर ऐसी, सब सुख बिन माँगे आए।                                                 

धन लक्ष्मी की चिंता है वो, मुझसे रूठकर न जाए।।                                                      

शुभ संस्कार शील मर्यादा, ग्रामीणों का गहना है।                                                                  

शहर चतुर चालाकों की है,  गिरगिट बनकर रहना है।।                                                       

 

कालिख लगा दो चेहरे पर,  या तन ही कर दो काला।                                                      

काले धन के मतवालों को, फर्क नहीं पड़ने वाला।।                                                   

सदगुण अर्थहीन कलियुग में, भ्रष्ट आचरण मन भाए।                                     

दया करो हे अंतर्यामी,  सुख वैभव सब घर आए।।

 

मूल मंत्र

 

इज्ज़त गई तो कुछ न खोया, धन खोया सब कुछ खोया।                                              

भारत के बच्चों के मन में,  यही बीज हम ने बोया।।                                                              

-------

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

आ. भाई अखिलेश जी , अच्छी रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय लक्ष्मण  भाईजी

व्यंग्य रचना आपको पसंद आई , हृदय से धन्यवाद आभार

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