आदरणीय साथियो,
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सूखे खेत
बादल के पास संचित धरती की उसांसें पानी होने लगीं। वह बोझिल हो चुका था।और अधिक भार - वहन करने में वह अक्षम था।पसीने - पसीने हुए उसके लिए उमस असह्य थी।वह बरसने लगा। कुछ खेत भींगे।इतराए।कुछ जल मग्न हो हाय तौबा मचाते।कुछ सूखे ही रहे।त्राहिमाम करते।धूल उड़ती।ऊपर तक जाती,पर जल का देवता उन्हें अनदेखा करता।उनकी आर्त पुकार अनसुनी करता। उन्हें वापस लौटाता।
अब उन खेतों की दरारें फिर से उसासें भरने लगीं। गर्म हवाओं का बवंडर पूरे आसमान में छाने लगा। छा गया।आकाश तिलमिलाया।उसने बादल को कुरेदा।उसे डपटा।पर बादल असहाय -सा सिर धुनने लगा।
"क्यों?क्या हुआ?फिर से बरसो।सूखे खेतों पर बरसो।" आकाश ने बादल को आगाह किया।
"असमर्थ हूं।"बादल सिर झुकाए हुए बोला।
"क्यूं? उन खेतों से भी वाष्प राशि तुम्हे मिली थी।बड़ी उम्मीद से उन्होंने अपने तन की आर्द्रता तुम्हें सौंपी थी कि समय पर काम आयेगी।वह उनकी जमा पूंजी थी।क्या हुई?"
"हरे -भरे खेतों पर मैंने लुटा दी।अब मेरे पास कुछ नहीं बचा।" बादल मरियल आवाज में बोला।
"किसी का हिस्सा किसी और को दे दिया?प्यासे को पानी नहीं और फफनते को सुधा राशि? कहीं बाढ़ भी?वाह रे, जीवन -दाता! धिक्कार है तुम पर।" आकाश गुर्राया।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
सादर नमस्कार। गोष्ठी का आरंभ प्रतीकात्मक बेहतरीन शीर्षक वाली कसी हुई बिम्बात्मक शैली की लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। हर तरह की अमूल्य 'राशि' का बँटवारा/इंवेस्टमेंट ऐसे ही तो हो रहा है। विचारणीय मुद्दा। अन्य सहभागी साथियों की विषयांतर्गत रचनाओं को पढ़ने व सीखने हेतु हम प्रतीक्षारत हैं।
लघुकथा के कथ्य,तथ्य और बिंब वगैरह की सराहना के ब्याज मुझे प्रोत्साहित करने हेतु आपका हार्दिक आभार, आदरणीय उस्मानी जी।मेरी भी इच्छा है कि सहकर्मी,सहधर्मी बंधु,मोहतरमा इस गोष्ठी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें और सीखने सिखाने के इस आयोजन को शानदार बनाएं।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत कुछ कहती,प्रतीकात्मक कथा बहुत कुछ बोलती है और कर्ताधर्ताओं की पोल खोलती है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।
आपका हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण जी।
बिम्बात्मक शैली में सुन्दर सृजन...
बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय।
आपका आभार आ.बबिता जी।
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। क्या कहने,, प्रतीकों में कोई बात कहना आप से सीखे। मैं तो एकदम नया हूँ पर आपसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। बधाई इस लघुकथा पर
आपका आभार आ.सोनांचली जी।
आदरणीय मनन जी
सादर अभिवादन
आकाश और बादलों के संवाद में निहित संदेश सफलता से संप्रेषित हुआ है।संपन्न की संपन्नता बढ़ती जा रही है और विपन्न और अधिक विपन्न हो रहा है।ये imbalance प्राकृतिक हो या सामाजिक निश्चय ही आपदा का जनक है हार्दिक बधाई इस लघुकथा पर
आपका आभार आ. प्रतिभा पांडे जी।
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