परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के २८ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार मेरी दिली ख्वाहिश थी कि ऐसा मिसरा चुना जाय जिसकी बह्र एकदम नयी हो अर्थात इस बह्र पर पिछला कोई मुशायरा आयोजित न हुआ हो| मिसरा भी ऐसा हो जिसके काफिये और रदीफ सामान्य होँ| बड़ी मशक्कत के बाद जो मिसरा मुझे मिला वो भारत के महान शायर जनाब बशीर बद्र साहब की एक गज़ल का है जिसकी बह्र और तकतीह इस प्रकार है:
"खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है"
२२१ १२२२ २२१ १२२२
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ अक्टूबर शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ अक्टूबर दिन सोमवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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बहुत खूब जनाब क्या कहने
दिल से ढेरों दाद
ठहरेगा कहाँ जिसकी फितरत में रवानी है l
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ll
बहुत खूब असफाक साहेब ..... सुन्दर आगाज़ ..... फीता काटने की बधाई . खुबसूरत गिरह और लाज़वाब पेशकश के लिए दाद कुबूल फरमाएं.
सादगी भी तो क़यामत की अदा होती है , की पुष्टि करती आपकी ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल कीजिए .
बहुत खूब अश्फाक अली जी क्या ग़ज़ल कही है
इक झूठ के ख़ातिर वो सौ झूठ कहे शायद l
सच बोलने वाले के लफ्जों में रवानी है ll....वाह
लाजवाब लाजवाब लाजवाब ....बेहतरीन अशआरों से सजी इस गज़ल को बार बार पढ़ने का दिल करता है| जनाब गुलशन खैराबादी साहब मेरी तरफ से दिली दाद कबूल फरमाएं|
ख़ूबसूरत ग़ज़ल, ख़ूबसूरत आग़ाज़, मुबारकबाद जनाब!
क्या खूब फरमाया है जनाब अशफाक अली साहेब आपने-
//मिलने को तड़पती है दिन-रात समंदर से l
रोके से रुकी है कब दरिया की रवानी है //
और ये भी-
//इक झूठ के ख़ातिर वो सौ झूठ कहे शायद l
सच बोलने वाले के लफ्जों में रवानी है//
बधाई हो इस सुन्दर गज़ल लिखने पे.
मिलने को तड़पती है दिन-रात समंदर से l
रोके से रुकी है कब दरिया की रवानी है ll..subhanalla..wah! Ali bhai.
भारत के मेरे अन्दर खुशबु है निशानी है l
उर्दू है ज़ुबां मेरी भाषा मेरी बानी है ll
ये दौरे गरानी भी क्या दौर-ए-गरानी है l
है खून जहाँ सस्ता महंगा वहीं पानी है ll
साली भी हैं साले भी गोरे भी हैं काले भी l
अहबाब सभी खुश हैं बारात जो आनी है ll
दीवार कोई रोके इसको ये कहाँ मुमकिन l
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ll
"नायाब" तुम्हें भूलें मुमकिन ही नही हमसे l
जो तुमने अता की है क्या ख़ूब निशानी है ll
भाई मोहम्मद नायाब जी, बढ़िया अशार निकाले हैं, जिसके लिए आपको मेरी दिली मुबारकबाद. लेकिन मेरे अजीज़ दोस्त ग़ज़ल का मतला जम नहीं रहा, सानी में "उर्दू है ज़ुबां मेरी भाषा मेरी बानी है " से बात नहीं बन रही, ज़रा गौर फरमाएँ.
बढ़िया ग़ज़ल लिखी है वही बात मुझे भी खटक रही है जो योगराज जी ने कही बहरहाल दाद कबूल कीजिये
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