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परम स्नेही स्वजन,
आज दसवीं तारीख है और वक्त आ गया है कि दिसम्बर के तरही मिसरे की घोषणा कर
दी जाय, तो जैसा कि पहले ही संपादक महोदय ने महाइवेंट के दौरान एक मिसरे को
तरही के लिए चुना था तो उन्ही की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए पेश है आपके
समक्ष तरही मिसरा|

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
१२२ १२२ १२२ १२२
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
बहर: बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
हिंदी में इसे भुजंगप्रयात छन्द के बाण छन्द  के नाम से जाना जाता है जिसका विन्यास है यगण(यमाता) ४ बार|
अब रही बात रद्दीफ़ और काफिये की तो इसे फ़नकारो की मर्ज़ी पर छोड़ा जा रहा
है चाहे तो गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कह दें या रद्दीफ़ के साथ, बस इतना ख़याल
रखें की ये मिसरा पूरी ग़ज़ल में मिसरा ए ऊला या मिसरा ए सानी के रूप में
कहीं ज़रूर आये|

इस बार नियमों में कुछ बदलाव भी किये गए हैं अतः निम्न बिन्दुओं को ध्यान से पढ़ लें|

१) मुशायरे के समय को घटाकर ३ दिन कर दिया गया है अर्थात इस बार मुशायरा दिनांक १५ से लेकर १७ दिसम्बर तक चलेगा|
२) सभी फनकारों से निवेदन है की एक दिन में केवल एक ग़ज़ल ही पोस्ट करें अर्थात तीन दिन में अधिकतम ३ गज़लें|

आशा है आपका सहयोग मिलेगा और यह आयोजन भी सफलता को प्राप्त करेगा|
यह बताने की आवश्यकता नहीं है की फिलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद रहेगा और १४-१५ की मध्यरात्रि को खुलेगा|
तो चलिए अब विदा लेते हैं और मिलते है १४-१५ की मध्यरात्रि को|

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Replies to This Discussion

मेरी बात तुझको जो लगती है कड़वी 
उसी में  तू  पायेगा  मेरी  मुहब्बत ...

 

खूबसूरत शेर हैं सारे ... मुहब्बत में कितना कुछ है ... इस ग़ज़ल को पढ़ कर समझ आता है .... मुबारक कबूल करें पुरुषोत्तम जी ..

//चले आओ लिख दो इबारत हवा पर
महक बन के फ़ैलेगी अपनी मुहब्बत !//

बहुत बेहतरीन ख्याल आज़र साहिब - वाह !

Badhiya...

मेरी बात तुझको जो लगती है कड़वी
उसी में  तू  पायेगा  मेरी  मुहब्बत

बहुत अच्छी बात कहता है ये शेर...

बहुत सुंदर है ये ग़ज़ल...

लिखने के लिए धन्यवाद

है सबको  पता आग-पानी  में अंतर
मिलन से ही इनके है होती मुहब्बत.....

........शानदार.........

उस्तादाना ग़ज़ल. बधाई.

वाह जनाब वाह, आप तो महफ़िल के जान है, आपकी ग़ज़ल का इन्तजार हमे हर मुशायरे मे होती है, बेहतरीन शे'र लेकर आप आये है, दाद कुबूल कीजिये जनाब, बधाई आपको,

ग़ज़ल :-

 
कहाँ सरहदों से है हारी मुहब्बत
है   नफरत के जज्बे पे भारी मुहब्बत |

 

ये राहत ये अदनान फूल उस चमन के
मगर इनकी खुशबू हमारी मुहब्बत |

 

मुहब्बत भरे दिल चटख बेल-बूटे
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |

 

ये गोले ये बारूद बम के ज़खीरे
सिसकती है केसर की क्यारी मुहब्बत |

 

बहुत दुश्मनी की अमाँ छोड़ भी दो
करें अपने बाघा-अटारी मुहब्बत |

 

कदम दो चलो तुम कदम दो चले हम
ये दुनिया भी देखे हमारी मुहब्बत |

 

लता और ग़ुलाम अली गाते हैं ग़ज़लें
है दोनों तरफ बेकरारी मुहब्बत |

 

चलो सानिया और शोएब से सीखें
है बेटी हमारी तुम्हारी मुहब्बत |

 

ये लैला ये मजनू ये शीरीं ये फरहाद
निभालो तो यारों की यारी मुहब्बत |

जी नवीन भाई लगा मुहब्बत की इन दो पड़ोसियों को आज के हालात में बहुत ज्यादा ज़रूरत है इस लिये ये गज़ल एक विषय पर कह गया !! आपकी तारीफ का आभार!!

बहुत बढ़िया अरुण भाई। समसामयिक विषयों पर लिखी शानदार ग़ज़ल। बधाई

बहुत खूब ... अगर हर आदमी आपका ये पैगाम अपने जीवन में उतार ले .. तो भारत पाकिस्तान एक हो जाएँ ....

शुक्रिया अनीता जी और धर्मेन्द्र जी !! लिखना सार्थक प्रतीत हो रहा है !!

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