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आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

 

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 35 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

इस आयोजन में प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है.इस चित्र को परिभाषित करती हुई छंद-रचना प्रस्तत करनी है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –

15 फरवरी 2014 दिन शनिवार

से

16 फरवरी 2014 दिन रविवार

छंदोत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

 

इस बार से "चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के मूल स्वरूप को स्थायी रखते हुए व्यावहारिक परिवर्तन किया जा रहा है. छंदोत्सव का आयोजन अबसे निर्धारित छंदों पर ही आधारित होगा.

 

इस बार के आयोजन के लिए दो छंदों का चयन किया गया है, कुण्डलिया छंद और चौपाई छंद.


अधिक-से-अधिक तीन कुण्डलिया या पाँच चौपाई प्रस्तुत कर सकते हैं.

 

प्रस्तुतकर्ता एक बार की प्रवष्टि में किसी एक छंद पर रचना डालें

 

ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.

 

उन सदस्यों के लिए जो कुण्डलिया और चौपाई छंदों के आधारभूत नियमों से परिचित नहीं हैं, उनके लिये इनके संक्षिप्त विधान प्रस्तुत किये जा रहे हैं.

 

लेकिन उससे पूर्व मात्रिक छंदों में गेयता की सुनिश्चितता हेतु निम्न विन्दुओं पर एक बार फिर से ध्यान से देखें.

 

शब्दों के उच्चारण और उसकी मात्राओं के समवेत स्वरूप के अनुसार शब्दों के कल बनते हैं. जैसे, शब्दों के द्विकल, शब्दों के त्रिकल, शब्दों के चौकल, षटकल आदि. इसी के अनुसार पदों का प्रवाह निर्धारित होता है.

द्विकल, चौकल आदि शब्दों को सम मात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हम, वह, निज आदि.

जबकि त्रिकल या षटकल आदि शब्दों को विषममात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हुआ, बड़ा, कहाँ आदि त्रिकल हैं.

 

यों, कोई शब्द षटकल हो तो वह उच्चारण के लिहाज से सममात्रिक ही हुआ करता है. यानि वह दो विषम शब्दों का पूर्ण स्वरूप होने से सम शब्द ही माना जाता है.

दीवाना, आवारा, परंपरा आदि षटकल शब्द हैं.

व्यवहार जैसा शब्द द्विकल और त्रिकल के समूह है. व्यव द्विकल तथा हार त्रिकल.

 

इस तथ्य को समझ लेने से चरणों के कुल शब्दों की मात्रा को गिनने के अलावे शब्द-विन्यास को निर्धारित करने में भी सहुलियत हो जाती है. साथ ही साथ, गेयता को सुचारू रूप से निर्धारित करने के लिए मात्रिकता को निभाना भी सहज हो जाता है.

यानि यह अवश्य मान लें कि कोई मात्रिक पद (छंद की एक पंक्ति) मूलतः सम शब्दों का ही समुच्चय बनाता है.

अर्थात कोई विषम शब्द हो तो उसके ठीक बाद विषम शब्द रख कर षटकल बनाने से सम मात्रिकता का निर्वहन हो जाता है. यानि विषम शब्द के बाद विषम शब्द ही आवे और सम के बाद एकदम से विषम शब्द न आवे. आवे भी तो उस विषम के बाद एक और विषम शब्द रख कर सभी शब्दों के समुच्चय को सम मात्रिक बना लेते हैं.

जैसे, बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर जैसे पद में बड़ा त्रिकल के बाद हुआ भी त्रिकल है. दोनो मिल कर षटकल का निर्माण करते हैं जो कि सम संख्या भी है. इस तरह गेयता या पढ़ने के (वाचन) प्रवाह में कोई दिक्कत नहीं आती.

चौपाई : मूलभूत नियम हेतु यहाँ क्लिक करें ........

कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम हेतु यहाँ क्लिक करें ........

आयोजन सम्बन्धी नोट :

(1) 14 फरवरी 2014 तक Reply Box बंद रहेगा, 15 फरवरी दिन शनिवार से 16 फरवरी दिन रविवार यानि दो दिनों के लिए Reply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

विशेष :

यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

अति आवश्यक सूचना :

आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना, कि एक ही दिन में दो रचनाएँ.

 

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.

नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

 

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

 

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.

 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

 

रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहा...

 

मंच संचालक

सौरभ पाण्डेय

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion

बहुत खूब रमेश भाई जी .......अच्छा लगा

सादर आभार रविजी

आदरणीय रमेश भाई 

सभी कुंडलियाँ चित्र के अनुरूप हैं, हार्दिक बधाई।

सादर आभार आदरणीय आपका

बढ़िया प्रयास ..कुण्डलिया अच्छी लिखी हैं रमेश जी बहुत बहुत बधाई

शाला परिसर छात्र हैं, पहने नीली वेश ।-----नीला 
फैला करके हाथ सब, व्ययाम करते ऐश। ----व्यायाम 

बाह अपना फैलाये ।----अपनी 

जाना हमको स्कूल---मुझको 

दांत हो जो खाने का ।----खाने के 

आदरणीय दीदीजी, मै आपका हार्दिक आभारी हू जो आपने मेरे ब्याकर दोष को सुस्पष्ट किया बहुत बहुत धन्यवाद

कुण्डलिया छंद प्रयास पर हार्दिक बधाई आ० रमेश कुमार चौहान जी 

शाला परिसर छात्र हैं, पहने नीली वेश ।....................नीली या नीला 
फैला करके हाथ सब, व्ययाम करते ऐश।।..........व्यायाम करना ऐश करना तो नहीं होता/ वेश और ऐश का तुक भी नहीं मिलता है/ सही शब्द व्यायाम है व्ययाम नहीं 
व्ययाम करते ऐश, गढ़े तन सुढौल अपने ।...........शब्द संयोजन सही नहीं है/ सुडौल सही शब्द है  सुढौल नहीं 
पढ़ना लिखना साथ, बुने है जीवन सपने ।।
झांके नन्हा एक, गुथे बच्चों की माला ।............गुथे या गुँथे?
बारी मेरी शेष, मुझे भी जाना शाला ।।

छोटू मोटू मै नही, वह कर रहा विचार ।
ईटो पर वह हो खड़ा, ताक रहा दीवार ।।...........................वाह! चित्रानुरूप 
ताक रहा दीवार, बाह अपना फैलाये ।........अपना को अपनी कर लीजिये 
पी.टी. करते देख, खुशी से मन बहलाये ।...............................ये भी बहुत सुन्दर 
करूं व्ययाम मै खूब, नही रहना अब मोटू ।................करूँ खूब व्यायाम 
जाना हमको स्कूल, सोचता है वह छोटू ।।..............हमको तो बहुत वचन शब्द है ...यहाँ एकवचन शब्द ही लिखना होगा 

सच्चा साथी शिक्षा बने, करे जगत उजियार । .................रेखांकित अंश की मात्रा देखें 
तन मन उमंग जो भरे, भरे जो सद्विचार ।।................गेयता बाधित है / दोहा छंद के आतंरिक शब्द संयोजन को ध्यान रखें  ... विषम चरण के लिए 3 3 2 3 2 / 4 4 3 2 और सम चरण के लिए  4 4 3/ 3 3 2 3 
भरे जो सद्विचार, दांत हो जो खाने का ।
बने नही भण्डार,  काम ना दिखलाने का ।।
सुन ‘रमेश‘ गोहार, रहो ना तुम तो कच्चा ।          
देवे जो संस्कार, वही है जग में सच्चा ।।....................रोला अंश में कथ्य तो चित्र को बहुत पीछे छोड़ गया 

इस प्रयास के लिए और सतत अभ्यास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 

आदरणीया दीदीजी, सादर नमनआपके व्यापक समीक्षा से मै अपने ब्याकरणीय दोष को देख पाया जिसका मुझे भान भी नही था, इस असीम अनुकम्पा के लिये मै आपका हार्दिक आभारी हूं, छंद विधान मात्रिक विन्यास दोष आसानी से मसझ में आते है किंतु लिंग, वचन में मै अपरिपक्व हूं कही कही वर्तनी दोष भी उभर आते है, यह तभी जान पाया जब मै आपलोगो के सानिध्य में आया अन्यथा पहले तो इस पर ध्यान ही नही जाता था । अब जब इस ओर ध्यान दे रहा हू, आंशिक सुधार हो रहा है। सुधार करना एक सतत प्रक्रिया जो आपलोगों के सहयोग और मार्गदर्शन के बिना मै नही कर सकता अस्तु सतत आपके स्नेह का आकांक्षी हू । हार्दिक आभार सादर

व्यापक समीक्षा@Dr.Prachi Singh mam...wah!

सुन्दर कुण्डलियाँ! आपको हार्दिक बधाई!

आदरणीय बृजेशजी आपने इस रचना को समय दिया हार्दिक आभार

आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी सादर, दिए चित्र अनुसार भावों को लेकर सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे है. सादर बधाई स्वीकारें. कुछ शब्दों की अशुद्धियाँ है अंतिम छंद में मात्रा गणना में चुक हुई है देख लें.सादर.

गाकर देखे छंद सब, और किया व्यायाम,
लगा हमें तब और भी, करना होगा काम,
करना होगा काम, तभी तो बात बनेगी,
कुण्डलिया की चाल, सभी का मन हर लेगी,
करो न कसरत व्यर्थ, गलत शब्दों को लाकर,
चुनो सही हर शब्द, और फिर देखो गाकर ||

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