नमस्कार साथियो !
चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ अंक-१९ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |
इस प्रतियोगिता हेतु इस बार भी कुछ विशिष्ट अंदाज़ का चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है यह चित्र आदरणीय प्रधान सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी द्वारा मेरे पास प्रेषित किया गया है, अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
चाहूँ शीतल छाँव जल , तपते पर अंगार.
मृग मरीचिका जिंदगी, रहे भ्रमित संसार.
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र की भी व्यवस्था की गयी है जिसका विवरण निम्नलिखित है :-
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala
A leading publishing House
नोट :-
(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करें |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१९ , दिनांक १८ अक्टूबर से २० अक्टूबर की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव
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आभार आदरणीय सौरभ जी --
कुण्डलि मार रहा फुफकार सदैव छुपे जब तप्त धरा हो ।
दोहन रोलन की भरमार सुधार करे कुछ जो अखरा हो ।
रेगिसतान दिखा नभ मेघ हुई बरसात हरा सगरा हो ।
सौरभ पान मिले वरदान रचे 'रवि' छंद विशेष 'गिरा' हो ।।
छंदन की रचना मनभावन भावपगा रस-राग सुनावे
पाठक प्रेरित झूमि उठे, अनुप्रास उदार प्रयोग बुझावे
सादर मान-सुमान कहूँ, रविजी रचना अति मान बढ़ावे
शुद्ध सलाह-सुझाव सही, यदि लायक बात कहीं अझुरावे....
जय होऽऽऽऽ ......
क्या लाजवाब अनुप्रास है आदरणीय रविकर जी...अनंत बधाईयां..............!
छंद के साथ जब अलंकारों का प्रयोग होता है तो रचना कैसे निखर कर आती है सहज ही समझा जा सकता है, आदरणीय रविकर जी, आपने प्रस्तुत दोनों रचनाओं को एक अलग ही उच्चाई प्रदान किया है बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो |
बहुत बढ़िया रविकर जी अनुप्रास की छटा ज़बरदस्त ......शिल्प और कथ्य की दृष्टि से निश्चित रूप से दोनों छंद उत्कृष्ट है
बहुत बहुत बधाई
मित्र रविकर जी ! सुन्दर सवैयों के लिए भरपूर बधाई स्वीकारें !
बहुत बहुत बधाई हो रविकर जी इन शानदार छंदों के लिए।
आदरणीय रविकर जी, दोनों विधाओं में सशक्त अभिव्यक्ति है....हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
रुपमाला छंद (हर पंक्ति में २४ मात्राएं,१४ पर यति अंत में पताका)
भ्रूण ह्त्या,पाप जानो, है न कन्या भार,
मोह कैसा पुत्र का है,दो उसे भी प्यार,
बाढ़ होगी परिवार की,है नहीं आधार,
आज कन्या से बसा है,पूर्ण ही संसार
पुत्र से सेवा मिलेगी,व्यर्थ का है लोभ,
मृग मरीचिका मनुष्य की,हो न कोई क्षोभ,
मातु बाबा का जगत में,पुत्री रखे ध्यान,
मान रे मानव यही है,सत्य तू पहचान.
सही कहा पुत्र का लोभ करना पुत्री का ना चाहना भी कि पुत्र से ही वंश चलता है या पुत्र ही बुढापे का सहारा है ,एक मृगमरीचिका ही बन कर रह गया है ,अशोक कुमार जी सार्थक रूप माला छंद लिखे हैं
आदरेया राजेश कुमारी जी
सादर, आपसे रचना भाव पर समर्थन पाकर अतिशय प्रसन्नता हुई. आभार.
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी मृगमारीचिका जोकि प्रदत्त चित्र की आत्मा है उसका वर्नान आपने बेहद अलग और विशेष अंदाज़ में किया है. आपके छंद न केवल प्रवाहमई ही हैं अपितु एक बेहद सुन्दर और सार्थक सन्देश देने में भी सफल रहे हैं. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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