कितने ही मरुथल
छूट गये पीछे
पगली आशाओं को
मुट्ठी में भींचे
नदिया सी रेतीली
राहों में बहती
कलुष भी वहन करतीं
धाराएँ जीवन की
अवचेतन में, गुपचुप
सुख दुःख को बांचें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
दादी अम्मा का
भैय्या को दुलराना
चुपके से, दूध- भात
गोद में खिलाना
किन्तु 'परे हट' कहकर,
उसे दुरदुराना
रह- रहकर कोचें
वह शैशव की फासें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
जागी…
Posted on August 31, 2013 at 3:04pm — 16 Comments
Posted on August 23, 2013 at 11:15am — 24 Comments
Posted on August 20, 2013 at 9:37am — 14 Comments
टूट तो जाने ही थे
अन्तस् के बंध;
विष से उफनाये वे-
कटुता के छंद !
शब्द ही तो थे...
वह उद्दात्त मन का…
ContinuePosted on August 4, 2013 at 4:00pm — 34 Comments
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झुकना पड़ा
आसुरी प्रकृति को
थम गया ..मेरी हार्दिक बधाई.
महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना
तव कंठ में ही
सृष्टि का विध्वंस
हम हो न सकते ..nayab vichar..
महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना....badhai...
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
विनीता शुक्लजी, आपकी रचना ’हम न हो सकते नीलकंठ’ को माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने पर मेरी हार्दिक बधाई. आप उत्तरोत्तर बढ़ती चलें.. .
महीने के सर्व श्रेष्ठ रचना "हम हो न सकते नीलकंठ" के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे विनीता शुक्ल जी |आशा इस ओ बी ओ द्वारा प्राप्त पुरस्कार से उत्साहित होकर आपकी लेखनी में और निखर आएगा |मेरी हार्दिक शुभ कामनाए
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीया विनीता शुक्ला जी ,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की रचना "हम हो न सकते नीलकंठ" को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना (Best Creation of the Month) पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको पुरस्कार राशि रु ५५१/- और प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस नामित कृपया आप अपना नाम (चेक / ड्राफ्ट निर्गत हेतु) , Bank A/C Details तथा पत्राचार का पता व् फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी"