For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- दुनियादारी में अब तक हम बच्चे थे

22--22--22--22--22--2

जो तूफ़ाँ के डर से तटपर ठहरे थे
बशर नहीं थे वो पुतले मिट्टी के थे

कब तक तेरी हाँ सुनने को रुकते हम
हमको अपने फ़र्ज़ अदा भी करने थे

दिल के ज़ख़्म बयाँ करना कुछ मुश्किल था
आँखों में आँसू लब पर अंगारे थे

हॉट पे क्या बिकता था मुझको क्या मतलब
मेरी जेब में बस ख़्वाबों के सिक्के थे

जिसका पेट भरा है वो क्या समझेगा
भूख से मरने वाले कितने भूखे थे

दरियाओं के संग न अपनी यारी थी
प्यास बुझाने को होंठों पर क़तरे थे

सीख रहे हैं धीरे धीरे झूठ कपट
दुनियादारी में अब तक हम बच्चे थे

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 3:39pm

आदरणीय दिनेश जी बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने , बहुत बहुत मुबारकबाद 

Comment by Ravi Shukla on June 7, 2017 at 2:14pm

बहुत ख़ूब आदरणीय दिनेश जी. इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

Comment by Gurpreet Singh jammu on June 6, 2017 at 10:52am

आ हा हा क्या खूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय दिनेश जी,, आनंद आ गया पढ़कर,,
कब तक तेरी हाँ सुनने को रुकते हम
हमको अपने फ़र्ज़ अदा भी करने थे
बहुत खूब

Comment by Mahendra Kumar on June 5, 2017 at 8:36pm

सीख रहे हैं धीरे धीरे झूठ कपट
दुनियादारी में अब तक हम बच्चे थे ...बहुत ख़ूब आ. दिनेश जी. इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

//हॉट पे क्या बिकता था मुझको क्या मतलब// शायद यहाँ पर "हाट" होना चाहिए. देख लीजिएगा. सादर.

Comment by दिनेश कुमार on June 5, 2017 at 7:07pm
आभार सतविंदर भाई। मुहब्बत है आपकी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 5, 2017 at 6:00pm
दुनियादारी में हम अबतक बच्चे थे
क्या खूब दिनेश भाई,जिंदाबाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service