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Mamta gupta
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Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देतेतुम आग महब्बत की लगा क्यूँ नहीं देते' ऊला में शोलों का ज़िक्र है और सानी में आग लगाने की बात है, ग़ौर करें । 'जो हम से वफ़ा…"
5 hours ago
Mamta gupta posted a blog post

ग़ज़ल

मुझ को मेरी मंज़िल से मिला क्यूँ नहीं देते आख़िर मुझे तुम अपना पता क्यूँ नहीं देतेजज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देते तुम आग मुहब्बत की लगा क्यूँ नहीं देतेजब आप को बे इंतिहा मुझ से है मुहब्बत फिर हाथ मेरी सम्त बढ़ा क्यूँ नहीं देतेजो बन के सितारे हैं रवां आँख से आँसू ये ज़ीस्त की ज़ुल्मत को मिटा क्यूँ नहीं देतेजो मेरी हया की है अलामत मेरे सर पर परचम इसी आँचल को बना क्यूँ नहीं देतेहोंटों पे मेरे लिख के तबस्सुम की इबारत आँसू मेरी पलकों के मिटा क्यूँ नहीं देतेजो हम से वफ़ा करने की ग़लती हुई साहब मुजरिम…See More
Oct 16
Mamta gupta joined Admin's group
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सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर Team Admin जरूर विचार करेगी .....See More
Oct 11
Mamta gupta and Euphonic Amit are now friends
Oct 10
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Mamta gupta's blog post गजल
"आ. ममता जी, अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई। "
Aug 4
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल_
"आदरणीय सर नमन 🙏 🌺 आपकी हौसला-अफजाई तथा बेहतरीन इस्लाह का तहेदिल से शुक्रिया ।मै सुधार करती हूँ ।"
Aug 3
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल_
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'राज़-ए-दिल पर न किसी से भी बताया हमने' इस मिसरे में 'से' की जगह "को" करना उचित होगा, ग़ौर करें । 'शम्मा उल्फ़त की जो तुम ने थी जलाई…"
Aug 1
Mamta gupta posted a blog post

ग़ज़ल_

2122 1122 1122 22आँख से अश्कों का दरिया तो बहाया हमनेराज़-ए-दिल पर न किसी से भी बताया हमनेउन का हर एक सितम हँसते हुए सह डालाइस तरह रस्म-ए-मुहब्बत को निभाया हमनेशम्मा उल्फ़त की जो तुम ने थी जलाई दिल मेंउस को बुझने से कई बार बचाया हमनेहैफ़ उस ने ही न की क़द्र वफ़ाओं की मेरीजिस की उल्फ़त में ही दुनिया को भुलाया हमनेनक़्श मिटते ही नहीं दिल से मुहब्बत के तेरीकितनी ही बार मगर इन को मिटाया हमनेतीरगी ग़म की कभी हमको डराने जो लगीतेरी यादों के दिए को ही जलाया हमनेअपनी क़िस्मत के सितारे भी चमकने से लगेजब से ऐ…See More
Jul 30
Samar kabeer and Mamta gupta are now friends
Jul 23
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post गजल
"आदरणीय सर सादर नमन  🙏  मुझसे गलती से आपके कमेन्ट के साथ कई लोगों के कमेंट डिलीट हो गए इसके लिए क्षमा चाहती हूँ आपने ग़ज़ल को संवारने के लिए बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🌺🌺 मै सुधार करती हूँ 🙏"
Jul 20
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post गजल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, इससे पहले भी कमेंट किया था जो आपकी ग़लती से डिलीट हो गया । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है' इस मिसरे में 'बे सरोपाई' कोई शब्द नहीं है,एक शब्द है…"
Jul 19
Mamta gupta commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
"अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें आदरणीय"
Jul 19
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post गजल
"आदरणीय @Euphonic Amit उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया आपका"
Jul 19
Euphonic Amit commented on Mamta gupta's blog post गजल
"अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई "
Jul 15
Mamta gupta posted a blog post

गजल

बह्र-2122 2122 2122 212काफ़िया- गुमरही "ई" स्वररदीफ़-"क्या चीज़ है"ग़ज़ल-समझा राहे-दिल से हट कर गुमरही क्या चीज़ है।बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है।।प्यार रब की बन्दगी है प्यार रब की है रज़ा।प्यार से बढ़ कर जहाँ में दूसरी क्या चीज़ है।।ख़ुश्क होठों पर ये रखते हैं तराने प्यार के।आशिक़ों से पूछ लो दीवानगी क्या चीज़ है।।उनको छेड़ा इक ज़रा तो हो गया चेहरा गुलाल।खुल गया मुझ पर उभरती रौशनी क्या चीज़ है।।उलझी उलझी रहती हूँ उसके ख़यालो-ख़्वाब में।मैं नहीं ये जानती हूँ बे ख़ुदी क्या चीज़ है।।काश रब हम को भी उन के…See More
Jul 15
Mamta gupta and Aazi Tamaam are now friends
Jul 30, 2021

Profile Information

Gender
Female
City State
Balrampur
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Utraula
Profession
Self employed
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ग़ज़ल

मुझ को मेरी मंज़िल से मिला क्यूँ नहीं देते

आख़िर मुझे तुम अपना पता क्यूँ नहीं देते

जज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देते

तुम आग मुहब्बत की लगा क्यूँ नहीं देते

जब आप को बे इंतिहा मुझ से है मुहब्बत

फिर हाथ मेरी सम्त बढ़ा क्यूँ नहीं देते

जो बन के सितारे हैं रवां आँख से आँसू

ये ज़ीस्त की ज़ुल्मत को मिटा क्यूँ नहीं देते

जो…

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Posted on October 12, 2024 at 11:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल_

2122 1122 1122 22

आँख से अश्कों का दरिया तो बहाया हमने

राज़-ए-दिल पर न किसी से भी बताया हमने

उन का हर एक सितम हँसते हुए सह डाला

इस तरह रस्म-ए-मुहब्बत को निभाया हमने

शम्मा उल्फ़त की जो तुम ने थी जलाई दिल में

उस को बुझने से कई बार बचाया हमने

हैफ़ उस ने ही न की क़द्र वफ़ाओं की मेरी

जिस की उल्फ़त में ही दुनिया को भुलाया हमने

नक़्श मिटते ही नहीं दिल से मुहब्बत के तेरी

कितनी ही बार मगर इन को मिटाया…

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Posted on July 30, 2024 at 9:10pm — 2 Comments

गजल

बह्र-2122 2122 2122 212

काफ़िया- गुमरही "ई" स्वर

रदीफ़-"क्या चीज़ है"



ग़ज़ल-



समझा राहे-दिल से हट कर गुमरही क्या चीज़ है।

बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है।।



प्यार रब की बन्दगी है प्यार रब की है रज़ा।

प्यार से बढ़ कर जहाँ में दूसरी क्या चीज़ है।।



ख़ुश्क होठों पर ये रखते हैं तराने प्यार के।

आशिक़ों से पूछ लो दीवानगी क्या चीज़ है।।



उनको छेड़ा इक ज़रा तो हो गया चेहरा गुलाल।

खुल गया मुझ पर उभरती रौशनी क्या चीज़… Continue

Posted on July 13, 2024 at 11:28am — 5 Comments

जो भी ज़िक्रे ख़ुदा नहीं करते

जो भी ज़िक्रे ख़ुदा नहीं करते

वो किसी के हुआ नहीं करते



नेमतें पा के लोग क्युं आख़िर

शुक्रे ख़ालिक़ अदा नहीं करते



राहे हक़ पर जो गामज़न हैं बशर

वो किसी का बुरा नहीं करते



दिल मेरा ग़मज़दा नहीं होता

वो जो मुझसे दग़ा नहीं करते



जाने क्या हो गया है अब उनको

मुझसे हँस कर मिला नहीं करते



याद आती नहीं अगर उन की

हम कभी रत-जगा नहीं करते



लाख कोशिश करो मिटाने की

नक़्शे उल्फ़त मिटा नहीं करते



ज़ुल्म से 'नाज़'… Continue

Posted on June 22, 2021 at 1:22pm — 10 Comments

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"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
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"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
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किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
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ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

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