For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Narendra Vyas
  • Male
Share on Facebook MySpace

Narendra Vyas's Friends

  • raj jalan
  • sunil gajjani
  • kaustubh shukla
  • Aparna Bhatnagar
  • Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह
  • Deepak Sharma Kuluvi
  • Jaya Sharma
  • आशीष यादव
  • advocate mukund vyas
  • Manoj Kumar Jha
  • Julie
  • Pankaj Trivedi
  • योगराज प्रभाकर
  • asha pandey ojha
  • Er. Ganesh Jee "Bagi"
 

Narendra Vyas's Page

Profile Information

City State
Bikaner
Native Place
Jaipur
Profession
service
About me
i m editor of Akhar kalash hindi literacy blog

Narendra Vyas's Blog

पिछला सावन !

याद है मुझे !

पिछला सावन

जमकर बरसी थी

घटाएँ

मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ

फूल, पत्तियां मानो

लौट आया हो यौवन



सब-कुछ हरा-भरा

भीगा-भीगा सा

ओस की बूँदें

हरी डूब से लिपट

मोतियों सी

बिछ गई थी

हरे-भरे बगीचे में

याद है मुझे !



गिर पडा था मैं

बहुत रोया

माँ ने लपक कर

समेट लिया था

उन मोतियों को

अपने आँचल में

मेरे छिले घुटने पे

लगाया था मरहम

पौंछ कर मेरे आँसू और

मुझे बगीचे…
Continue

Posted on September 15, 2010 at 10:16pm — 3 Comments

अवतार हेतु आर्त-निवेदन

सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!



हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के… Continue

Posted on September 2, 2010 at 6:44am — 4 Comments

अहिंसा का यथार्थ स्वरूप

सामान्यतया अहिंसा का अर्थ कायरता से लगाया जाता है..जबकि अहिंसा का वास्तविक अर्थ होता है निडरता | दूसरे अर्थों में कहूँ तो 'अभय', जो भयजदा नहीं हो और ये ही निडरता ही नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है. इंसान का निडर होना उसका सबसे अहम् गुण होता है. निडर और अभय व्यक्ति ही स्वतंत्र हो सकता है. हिंसक व्यक्ति सदा स्वयं को असुरक्षित और तनावग्रस्त महसूस करते हैं, साथ ही अप्रिय भी होते हैं। भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस हिंसावादी नहीं थे..निडर थे..अभय थे..अपने आपको कभी परतंत्र नहीं समझा और इसी विचार को… Continue

Posted on August 28, 2010 at 4:27pm — 3 Comments

कलियुग में भी सतयुग !

सुना है

सभ्यता सबसे पहले

यहीं आई,

पड़ी है अब खंडहरों सी

पिछवाड़े में जमीन्दोस है

खुदाई में दिखती है

शर्म खरपतवार सी

बेशर्मी की

हरीभरी क्यारियों में

अपने वजूद को रोती है

इंसानियत

चेहरों की हवाइयों सी उड़

उलटी जा लटकी

अँधेरी सुरंग में



सच तो अब

पन्नो में ही पलता है

इंसान

मरने से पहले

जिन्दा जलता है

रिअलिटी का तो अब,

सिर्फ शो होता है

परिवार तो

हम और

हमारे दो होता है

मातृत्व… Continue

Posted on August 27, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

Comment Wall (9 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 9:23am on October 4, 2012,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 8:01pm on March 13, 2011, आशीष यादव said…
आदरणीय नरेन्द्र व्यास जी, आप ने मेरे ब्लॉग को पढ़ा और मुझे अच्छी सलाह दी, मै दिल से आभारी हूँ| मै आप से अनुरोध करूँगा की आप मेरी अशुद्धियों से मुझे अवगत कराएं| आप की अति कृपा होगी|
At 6:17pm on October 4, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 7:28am on October 4, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…
MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY NARENDRA BHAIYA///...MAY ALL UR DREAMS COME TRUE ON THIS BIRTHDAY....

At 9:53pm on July 12, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 1:08pm on July 12, 2010, Admin said…

At 4:47pm on July 11, 2010,
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
said…
हमारा सौभाग्य है की श्री नरेंद्र व्यास जी भी आज "ओपन बुक्स ओनलाईन" से जुडे हैं ! श्री व्यास जी "आखर कलश" के संचालक के तौर पर बहुत समय से साहित्य सेवा और साधना से जुडे हुए हैं ! मैं श्री नरेंद्र व्यास जी को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने मेरी प्रार्थना स्वीकार करते हुए "ओपन बुक्स ओनलाईन" से जुड़ने का निर्णय लिया ! मुझे आशा है कि आपकी मौजूदगी से हम सबको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, oBo परिवार में बहुत बहुत स्वागत है आपका !
At 4:46pm on July 11, 2010, advocate mukund vyas said…
pagelagna bhai shab ....
i m also from bikaner .... or sanjog se aapke ghar ke pass hi rahta hu..
At 3:32pm on July 11, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service