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Posted on September 17, 2014 at 7:29am — 11 Comments
बहुत गहरा गए हैं अंधेरे हर सू
रोशनी की किरन अब कहां खोजें
गुम हो गई है कहां दुनिया में
आओ मिल के हम वफा खोजें
खतावार जब कि थे हम दोनों ही
क्यूं न इक जैसी ही सजा खोजें
जीत जाएं न कहीं दूरियां हमसे
आओ मिल के अपनी खता खोजें
नफरतों के वास्ते न जगह बाकी हो
पूरे जहान में एसा कोई पता खोजें
-----प्रियंका
"मौलिक व अप्रकाशित"
Posted on August 12, 2014 at 11:00pm — 4 Comments
सूरज............
रोज निकल पडता है चहलकदमी करते
ठिठकता है कुछ देर मेरे शहर में भी
फिर चल देता है
कांधे पर कुछ यादों की गठरी लादे
देखता है मुड कर किसी शाख के पीछे से
कुछ और भी गुमसुम हो जाते हैं
दरख्तों के घने लंबे साए
पर यादें...............
जाने कहां कहां से फिर लौट कर आ जाती हैं
जिन्हें रोज ही सूखे पत्तों के साथ
समेट कर फेंक देती हूं
---------प्रियंका
"मौलिक व अप्रकाशित"
Posted on August 8, 2014 at 2:00pm — 5 Comments
जब बूंदें रिमझिम गिरती हैं
कुछ स्वरलहरियां सी बुनती हैं
हरियाली के इस मौसम में भी
बस फीका सा रह जाता है मन
भीगा भीगा सा ये मौसम.....
भीगी सी वादी और समां
प्यासी धरती हो दृवित चले
पर प्यासा सा रह जाता है मन
रिमझिम बारिश में घंटों रहना
राहों में बस यूं ही संग संग चलना
तेरी उन सारी बातों को
फिर फिर से दोहराता है मन.
मन तुमसे मिलने को तरसे
बूंदों संग आंखें कितना बरसें
इन दोनों की इस बारिश मे
बस रीता सा रह जाता है…
Posted on August 8, 2014 at 2:00pm — 7 Comments
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Comment Wall (5 comments)
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आपका आभार , यह मेरे लिये वंदनीय है कि आपने मुझे मित्रता के लिये स्वीकार किया। यहां पर साहित्यिक गतविधियों में जानकारी आदान-प्रदान करने के अवसरों का लाभ मिलेगा।।
मित्रता के लिए बढे हाथ का सादर स्वागत i मै एक अच्छ मित्र बन सकूं यह मेरा संकल्प है i
मित्रता का प्रस्ताव स्वीकारते हुए प्रसन्नता है स्वागत है आपका आदरणीया प्रियंका पाण्डेय जी
आपकि मित्रता का स्वागत है आदरणीया प्रियंका जी
सादर!
मित्रता मेरा सौभाग्य है। धन्यवाद।