1222 1222 1222 1222
गुलाबों से किताबों तक समाईं धूल की परतें
जरा देखो तो अब माथे पे आईं धूल की परतें!!
ये किस आगोश ने सारे शहर को घेर के रक्खा
घना है कोहरा या फिर हैं छाईं धूल की परतें?
गया इक वक़्त वो आया न तो सन्देश ही आया
हमीं ने रिश्ते नातों पर चढ़ाईं धूल की परतें
गिला इस बात का उनसे करें भी तो करें कैसे
गमे दिल ने मेरे लब पर सजाईं धूल की परतें
बड़े ही फख्र से छोड़ी थीं अपने गाँव की गलियां
मगर 'ब्रज'…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 21, 2018 at 7:00pm — 23 Comments
मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आँख आँसू बहाती रही रात भर
दर्द का गीत गाती रही रात भर
आसमां के तले भाव जलते रहे
बेबसी खिलखिलाती रही रात भर
बाम पे चाँदनी थरथराने लगी
हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर
रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे
आरजू छटपटाती रही रात भर
प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम
आशकी कसमसाती रही रात भर
आह भरते हुये राह तकते रहे
राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2018 at 5:30pm — 31 Comments
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