दोहा/ ग़ज़ल
चाहत के तूफान में, उजड़े चैन सुकून
चिंता में जल कर हुआ, भस्म खुदी का खून
गीता में लिक्खा गया, राहत का मजमून
लिप्सा के परित्याग से, खिलता आत्म-प्रसून
संग्रह का जो रोग है, बढ़ता प्रतिपल दून
लोभ अग्नि में हे! मनुज, यूँ खुद को मत भून
सुख का एक उपाय बस, इच्छा करिए न्यून
बाकी मर्ज़ी आपकी, खटिए चारो जून
मनस वेदना के लिए, यह बढ़िया माजून
सो पंकज नें कर लिया, लेखन एक जुनून
मौलिक…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 16, 2018 at 11:23am — 11 Comments
1212 1122 1212 22
तुम्हारे दीद की ख़ाहिश अभी अधूरी है
इसीलिए तो निगाहें खुली ही छोड़ी है
तमाम ख़ाब हैं आँखों में तेरी ही ख़ातिर
बुलाऊँ नींद, तेरा आना अब ज़रूरी है
किसी अज़ीज़ नें आख़िर मुझे सिखाया तो
यूँ रोज़ रोज़ ग़ज़ल लिखना बेवकूफ़ी है
जहाँ के लोगों के दुःख दर्द का गरल अपने
उतारा सीने में तब ही कलम ये पकड़ी है
बताऊँ कैसे उन्हें शायरी जुनून हुई
नसों में दौड़ती पंकज के, ये बीमारी है
मौलिक…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 11, 2018 at 5:41pm — 7 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
नैन में रैन गँवाए जाऊँ, वक्त पहाड़ जुदाई का
जाने सूरज कब निकले, है वक्त अभी रुसवाई का
उनको कोई ग़रज़ नहीं जो पूछें हाल हमारा भी
कोई दूजी वज्ह नहीं, परिणाम है कान भराई का…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:30pm — 14 Comments
22 22 22 22
उनसे मेरी बात हुई है
प्रतिबंधित मुलाक़ात हुई है
सारे स्वप्न तरल हैं मेरे
देखो तो बरसात हुई है
स्याही बन कर भस्म्है बिखरी
यूँ न अधेरी रात हुई है
मन खुद में ही खोज खुदी से
शांति कहाँ, आयात हुई है
दिल वो जीते दर्द मग़र हम
मत समझो बस मात हुई है
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 8, 2018 at 9:00pm — 18 Comments
जो हमसे मोहब्बत नहीं है तो हमको
बताओ कि हमसे लजाते हो क्यूँ तुम?
निगाहें मिला कर निगाहों को अपनी
झुकाते हो हमसे छिपाते हो क्यूँ तुम?
कभी फेरना पत्तियों पर उँगलियाँ,
कभी फूल की पंखुड़ी पर मचलना
अचानक सजावट की झाड़ी को अपनी
हथेली से छूते हुए आगे बढ़ना
ये शोखी ये मस्ती दिखाते हो क्यूँ…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 4, 2018 at 8:00am — 7 Comments
2122 2122 2122 212
आज अपना सारा ईगो ही जला देता हूँ मैं
बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको हटा देता हूँ मैं
मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब
ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं
नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं
सो मेरे होठों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं
तेरे चहरे पर शिकन संकोच अब आए नहीं
इसलिए सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं
कुछ नहीं बस हार इक ला कर चढ़ा…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2018 at 9:00am — 22 Comments
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