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गाँव से दूर जब से ठिकाना हुआ
बंदिशे काम उसका बहाना हुआ
आस में मुन्तज़िर आँखें दर पे टिकी
उसकी सूरत को देखे ज़माना हुआ
गोद में खेल जिसकी पला था कभी
गाँव वो आज कैसे बेगाना हुआ
जानते हैं सभी कबसे बदली नजर
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
जो झुलाता तुझे प्यार से डाल पर
वो शज़र देख कितना पुराना हुआ
गाँव में क्या नहीं था तेरे वास्ते
क्यों…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 31, 2014 at 11:30am — 30 Comments
जीवन में कितने चक्रव्यूह
पर घबराना कैसा
पग-पग मिले सघन अरण्य
खूंखार एक सिंह अदम्य
तुझे मिटाने की खातिर
खेले दांव बहु जघन्य
अहो प्रतिद्वंदी ऐसा
पर घबराना कैसा
करके तराश दन्त नक्श
जाना तू उसके समक्ष
नेस्तनाबूत करने को
उसी हुनर में होना दक्ष
कर वार उसी पर वैसा
पर घबराना कैसा
शत्रु हावी हो या पस्त
तू विजयी हो या परास्त
होंसलों की डोरी पकड़…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 28, 2014 at 12:20pm — 22 Comments
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