१२२२ १२२२ १२२२ २
कभी फुर्सत मिले तो सोच हारा कैसे
बिना तैरे मिले किसको किनारा कैसे
जहाँ लगती दिलों की भी बराबर कीमत
वहाँ पैसों बिना भी हो गुज़ारा कैसे
जिसे भाने लगे कबसे रकीबों के घर
भला दिल से कहें उसको हमारा कैसे
मुहब्बत की जहाँ रिमझिम फुहारें गिरती
सुलग उट्ठा वहाँ अदना शरारा कैसे
जहाँ मासूम लाशें हर तरफ फैली थी
डरी आँखों ने देखा वो नज़ारा कैसे
नहीं मिलती…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 22, 2015 at 10:25am — 17 Comments
रोज की तरह ऑफिस में घुसने से पहले उसने झुक कर उस भिखारी को कुछ पैसे दिए बहुत जल्दी में था पर्स पाकेट में रखने की बजाय वहीँ गिर गया जो उस भिखारी ने तुरंत लपक लिया| भिखारी ने देखा कुछ पैसों के साथ पर्स में दो तीन तरह के कार्ड थे|
कुछ देर बाद बाहर के ऑफिस से ऊँची आवाज आवाज आई अरे अरे ये भिखारी अन्दर कैसे आ गया?’ “साब बड़े साहब का ये पर्स गिर गया था सो उसे ही देने आया था”| “अच्छा अच्छा लाओ मैं दे दूँगा लेते हुए बाबू का चेहरा चमक उठा|
“साहब इस गमले से एक…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 19, 2015 at 11:08am — 30 Comments
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