पर्वत जैसे दिन कटें ,रातें लगती भारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं हारी||
अधरों पर मुस्कान है,उर के भीतर ज्वाला|
पीनी पड़ती सब्र की ,भीतर भीतर हाला||
बिस्तर पर जैसे बिछी,द्वी धारी कुल्हारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं हारी||
सरहद से आई नहीं, अबतक कोई पाती|
जल जल आधी हो गई,इन नैनों की बाती||
चौखट पर बैठी रहूँ देखूँ बारी बारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 29, 2018 at 8:51pm — 16 Comments
मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं
कंठ चीर तरु सरकंडों के
अल्गोज़े की बीन बनी है
अंतड़ियों के बान पूरकर
तिलचट्टों ने खाट बुनी है
मजबूरी ने कोख में फ़ाके बोए हैं
लूट खसोट के दंगल भिड़तु
किसने लूटी किसकी जाई
बुक्का फाड़ देवियाँ रोती
सनी लहू में साँजी माई
कंधों पे संयम के मुर्दे ढोए हैं
छल के पैने नाखूनों से
देह खुरचते जात धरम की
मक्कारी की आरी लेकर
लाश बिछाते लाज शरम…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 21, 2018 at 10:08pm — 17 Comments
पहाड़ी नारी
कुदरत के रंगमंच का
बेहद खूबसूरत कर्मठ किरदार
माथे पर टीका नाक में बड़ी सी नथनी
गले में गुलबन्द ,हाथों में पंहुची,
पाँव में भारी भरकम पायल पहने
कब मेरे अंतर के कैनवास पर
चला आया पता ही नहीं चला
पर आगे बढने से पहले ठिठक गई मेरी तूलिका
हतप्रभ रह गई देखकर
एक ग्रीवा पर इतने चेहरे!!!
कैसे संभाल रक्खे हैं
हर चेहरा एक जिम्मेदारी के रंग से सराबोर
कोई पहाड़ बचाने का
कोई जंगल बचाने…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 4, 2018 at 7:30pm — 21 Comments
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