बह्र - फऊलुन फऊलुन फऊलुन फउल
न छत है न कोई भी दीवार है।
मेरा घर भी कितना हवादार है।
हुनरमन्द होकर भी बेकार है।
अजीबोगरीब उसका किरदार है।
जिसे दूर तक सूझता ही नहीं,
वही इस कबीले का सरदार है।
भले ही जुदा धड़ से सर होगया,
अभी भी मेरे सर पे दश्तार है।
वो शेखी पे शेखी बघारे तो क्या,
सभी जानते हैं वो मुरदार है।
दवा का असर कोई होगा नहीं,
वो…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on January 29, 2018 at 9:49pm — 13 Comments
बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फउल
मग़रमच्छ घड़ियाल को जाल में।
फँसा कर रहेंगे वो हरहाल में।
खुदा जाने होंगी वो किस हाल में।
मेरी बेटियाँ अपनी ससुराल में।
निकालो नहीं बाल की खाल को,
नहीं कुछ रखा बाल की खाल में।
नतीजा सिफर का सिफर ही रहा,
मिला कुछ नहीं जाँच पड़ताल में।
मिनिस्टर का फरमान जारी हुआ,
गधे बाँधे जायेंगे घुड़साल में।
हुई हेकड़ी सारी गुम उसकी तब,
तमाचा पड़ा वक्त का गाल में।
कभी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on January 12, 2018 at 10:05pm — 12 Comments
बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
ग़ज़ब की है शोखी और अठखेलियाँ हैं।
समन्दर की लहरों में क्या मस्तियाँ हैं।
महल से भी बढ़कर हैं घर अपने अच्छे,
भले घास की फूस की आशियाँ हैं।
मुकम्मल भला कौन है इस जहाँ में,
सभी में यहाँ कुछ न कुछ खामियाँ हैं।
ज़िहादी नहीं हैं ये आतंकवादी,
जिन्होंने उजाड़ी कई बस्तियाँ हैं।
ये नफरत अदावत ये खुरपेंच झगड़े,
सियासत में इन सबकी जड़ कुर्सियाँ हैं।
समन्दर के जुल्मों सितम…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on January 5, 2018 at 10:27pm — 16 Comments
बह्र-फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
अँधेरे से निकलें उजाले में आयें।
नये साल में कुछ नया कर दिखायें।
गमों का लबादा जो ओढ़े हुये हैं,
उसे फेंक कर हम हँसें मुस्करायें।
जो चारो दिशाओं में खुशबू बिखेरे,
बगीचे में ऐसे ही पौधे लगायें।
न झगडें कभी धर्म के नाम पर हम,
किसी का कभी भी लहू ना बहायें।
न नंगा न भूखा न बेघर हो कोई,
चलो हम सभी ऐसी दुनिया बसायें।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ram Awadh VIshwakarma on January 2, 2018 at 6:48am — 15 Comments
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