धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है
उदासी का सबब और भी गहरा हुआ है
तूफ़ा से कह दो थोडा संभल कर चले
वक्त आज यहाँ कुछ बदला हुआ है
दुनिया का कैसा ये बाजार सजा है
जहाँ देखो हर रिश्ता बिका हुआ है
रात भर लिखती रही दर्द की दास्ता
रात का साया और भी गहरा हुआ है
देश की हालात मत पूछो तो अच्छा है
यहाँ हर इंसान इंसान से डरा हुआ है
देख कर खुशनुमा ये मंज़र हैरान हूँ मैं
एक फूल से सारा चमन…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 28, 2014 at 11:30am — 12 Comments
मौन जब मुखरित हो जाता है
मौन जब मुखरित हो
शब्दों में ढल जाता है
मिट जाते भ्रम सभी
मन दर्पण हो जाता है
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
बोझिल मन शान्त हो
सागर सा लहराता है
वेदना सब हवा हो जाती
भोर दस्तक दे जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
धैर्य मन का सघन हो
विश्वास सबल हो जाता है
पतझड़ मन बसंत बन
कोकिल सा किलकाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 21, 2014 at 7:00pm — 8 Comments
खोटा सिक्का
चले थे खुद को भुनवाने
दुनिया के इस बाजार में.
पर खोटा सिक्का मान
ठुकरा दिया ज़माने ने
सोचा ! मुझमें ही कमी थी
या, फिर वक्त का साथ न था
समझ न पाये ,और चुप रह गए
पर चैन न आया
और चल पडे दुनिया को
जानने और पहचानने
देखा ! तो जाना ,
दुनिया कितनी अजीब है
झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी
के पलड़े में हर रोज
इंसान तुल रहा
पलड़ा जितना भारी
इंसान उतना ही…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 17, 2014 at 1:00pm — 9 Comments
अकेलापन
खिड़की से झांकता
एक उदास चेहरा
और, दूर खड़ा
पत्ता विहीन ,
ढ़ूँढ़ सा, एक पेड़
दोनों ही
अपने अकेलेपन
का दर्द बाँटते
और
घंटों बतियाते
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महेश्वरी कनेरी......पूर्णत: मौलिक/अप्रकाशित
Added by Maheshwari Kaneri on January 11, 2014 at 12:30pm — 8 Comments
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