देहलीज़ - लघुकथा -
दिल्ली में जनवरी की कयामत की सर्दी वाली रात। रात के ग्यारह बजे के लगभग घर की डोर बेल बजी। घर में दो बुजुर्ग प्राणी। दोनों ही सत्तर पार। आमतौर पर नौ बजे तक रजाई में घुस जाते थे। गहरी नींद में थे। बार बार घंटी बजी तो शर्मा जी की आँख खुली तो उठकर द्वार खोलने चल दिये। खटर पटर की आवाज से तथा लाइट जलने से मिसेज शर्मा भी आँख मलते हुए उठ बैठी।
"सुनो जी, तुम रुको, मैं खोलती हूँ।"
वे थोड़ी मजबूत थीं। शर्मा जी दुबले पतले और बीमार भी थे। वे रुक गये। मिसेज शर्मा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 8, 2019 at 6:14pm — 10 Comments
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