एक तो पिछला कर्ज ही अभी तक माफ नहीं हुआ था उस पर इस बार फिर फसल के चौपट होने और साहूकार के ब्याज की दोहरी मार उसके लिए असहनीय थी, घर में सभी को कुपोषण और बीमारी ने घेर रखा था। इस बार ना तो मदद को सरकार थी, ना ही लोग।
आखिरकार उसने शहर जाकर मजदूरी या कुछ और कर कमाने का फैसला लिया और जब वह लगभग नग्न बदन, एक बोझ भरी गठरी जिसमें कुछ सुखी रोटी और प्याज थी, लेकर , शहर के चौराहे नुमा पुल पर पहुंचा तो उसने पाया की उसके लिए सभी रास्ते बंद हैं और अवसाद ग्रस्त होकर उसने उसी पुल से नीचे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
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