‘अजी सुनते हो ---
‘हाँ सुनाओ, ‘
‘वह मिसेज मल्होत्रा की बहू, जिसके फरवरी में बेटा हुआ था I वह बेटा निमोनिया से मर गया और हमारी जो महरिन है इसकी ननद के भी लल्ला हुआ था, वह भी तीन दिन पहले डायरिया से मर गया और अपनी बेटी की सहेली -----‘
‘--- उसका बच्चा भी मर गया होगा I’
‘हां बिलकुल ---- ‘
‘मगर यह स्टैटिक्स तुम मुझे क्यों बता रही हो ?’
‘किसे बताऊँ, एक वह अपनी पोती है I छह महीने की हो गयी, उसे जुकाम तक न हुआ I’
(मौलिक व् अप्रकाशित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 24, 2015 at 9:10pm — 32 Comments
घुप अँधेरे में
रात के सन्नाटे में
मै अकेला बढ़ गया
गंगा के तीर
नदी की कल-कल से
बाते करता
पूरब से आता समीर
न धूल न गर्द
वात का आघात बर्फ सा सर्द
मैंने मन से पूछा –
किस प्रेरणा से तू यहाँ आया ?
क्या किसी अज्ञात संकेत ने बुलाया
अँधेरा इतना कि नाव तक न दिखती
कोई करुणा उस वात में विलखती
मैं लौटने को था
वहां क्या करता
पवन निर्द्वंद
एक उच्छ्वास सा भरता
तभी मै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2015 at 4:00pm — 14 Comments
दुपट्टा
भारत के वक्ष पर
सलीके से पड़ा
सफ़ेद दुपट्टा
वायुयान से दिखी –
धवल गंगा !
गंगा अब यहाँ नहीं बहती
साधु ने बालक से कहा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
कुछ माह पहले
पैरों में लिपटते थे सांप
कीचड में सनते थे
पैर और वाहन
पसीने से चुभते थे वपुष में कांटे
धुप में झुलसी जाती थी देह
कुछ माह पहले
नभ से बरसता था
थका-थका मेह
पुरवा से ऐठती थी ठाकुर की देह
क्वार की धूप में हांफता था बैल
कुछ माह पहले
हवा में नमी थी
चलता न वात
पंखा हांकने से सूखता न गात
बरगद के नीचे भी ठंढी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 12:05pm — 13 Comments
‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I
‘जी हाँ ----I’
‘कैसे सम्बन्ध थे ?’
‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’
‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’
‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’
‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’
‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 10, 2015 at 7:30pm — 31 Comments
सिमट रहा है जीवन का वृत्त
परिधि कम ही होगी धीरे- धीरे
लोगों के टोकने पर
जाने लगा हूँ पार्क में टहलने
मन बहलता तो नहीं है
पर देता हूँ बहलने
शरीर को मेन्टेन रख्नना है
पर गलेगी देह भी धीरे-धीरे
वृत्त की परिधि कम होगी धीरे-धीरे
पढ़ना चाहता हूँ
किताबे दशको तक मित्र रही है मेरी
पर अब सब धुन्धला जाता है
चश्मा भी अब काम नहीं आता है
लिखना…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2015 at 1:48pm — 22 Comments
कमल-नैन या कंज-लोचन है वह
कहते है शोक-विमोचन है वह
पद्म -पांखुरी जैसे है अधर
रक्त-नलिन से कपोल है सुघर
नील-नीरज सा मोहक वदन
वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन
है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल
पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल
हाथ की हथेली है राजीव-दल
विकसित है कर में श्याम-शतदल
चरण-सरोज की है महिमा अनूप
सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
उत्तर से आ रही है
लाल हवायें
जीभ लपलपाती
गर्म सदायें
हिमालय बदहवास बिलकुल बेदम है
हवा में आक्सीजन शायद कुछ कम है
दो कपोत हैं अब हर घर में रहते
गुटरगूं करते जाने क्या कहते !
एक है श्वेत दूसरा काला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
दर्पण हाथों से छूट रहे है
मखमल पर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 7:42pm — 14 Comments
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