फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .
नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .
फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .
अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .
फरेब ओढ़…
ContinueAdded by shalini kaushik on January 25, 2013 at 12:00am — 3 Comments
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