ग़ज़ल ( क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की )
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2122 ------1212 ------22
फ़ितरते बर्क़ है जलाने की /
ख़ैर क्या मांगें आशियाने की /
जाँ अगर लेनी थी बता देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की /
उनकी आदत है जुल पे जुल देना
और अपनी फ़रेब खाने की /
छिन गई नींद लुट गया है सुकूं
ये सज़ा पायी दिल लगाने की /
पास जाके भी देखते कैसे
उनकी आदत है मुंह…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2016 at 10:02pm — 12 Comments
ग़ज़ल ( निभा रहे हैं )
12122 ----12122)
फरेब उल्फ़त में खा रहे हैं /
सितमगरों से निभा रहे हैं /
घटाएं हों क्यों न पानि पानी
वो छत पे ज़ुल्फ़ें सुखा रहे हैं /
हुई है मुद्दत ये सुनते सुनते
वो मुझको अपना बना रहे हैं /
शराब ख़ोरी तो है बहाना
किसी को दिलसे भुला रहे हैं /
लगाके इल्ज़ाम दूसरों पर
वो अपनी ग़लती छुपा रहे हैं /
मेरे लिए बज़्म में वो आये
मगर सभी फ़ैज़ पा…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2016 at 11:47am — 10 Comments
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