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कभी जिन्दगी को जिया होता
ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता
मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती
अगर अश्क़ हँस के पिया होता
फ़लक चूमता ये कदम तेरे
कोई काम ऐसा किया होता
बिखरती न गिरती दुआ रब की
अगर चाकदामन सिया होता
कई रास्ते खुल गए होते
किसी का कभी गम लिया होता
कहाँ काटता यूँ अकेलापन
किसी को सहारा दिया होता
है क्या जीस्त खानाबदोशों की
ठिकाना न…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 5, 2015 at 7:42pm — 18 Comments
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