For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ajay sharma's Blog – February 2015 Archive (5)

आम आदमी हूँ , रोज़ गिरता संभलता हूँ , क्या करूँ ..............

मैं रोज़ ढलता हूँ पर , निकलता हूँ , क्या करूँ

सूरज हूँ ,  मगर रोज़ जलता हूँ , क्या करूँ //

मैं मिट्टी नहीं , न हि पानी न कोई खुश्बू

मैं हवा का इक झोंखा हूँ , आँख मल्ता हूँ , क्या करूँ //

मैं बचपन भी कहाँ अब , जवानी भी नहीं हूँ मैं

बुढ़ापा हूँ मैं , इसीलिए खलता हूँ , क्या करूँ//

न कोई सफ़र हूँ मैं , न कोई पड़ाव न सराय कोई

मील का पत्थर हूँ मैं , बस टलता हूँ , क्या करूँ //

कहाँ खुद्दार हूँ मैं , अना वाला भी नहीं हूँ…

Continue

Added by ajay sharma on February 24, 2015 at 12:29am — 8 Comments

देह का सागर जल गया

मन का मीत मन को छल गया
आँख का पानी मचल गया

वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी
वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी
देह का सागर जल गया

पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक
पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक
समय के हाथ से सावन फिसल गया

लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी
वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी
आस का संबल गल गया

मौलिक अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Added by ajay sharma on February 16, 2015 at 11:00pm — 11 Comments

ज़िंदगी गम का समंदर है ..............

दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो

दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो



लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?

सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो



क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?

क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो



इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का

सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो



घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया

आँसुयों सा ये सफ़र कर…

Continue

Added by ajay sharma on February 12, 2015 at 12:30am — 10 Comments

कुछ तो आपस मे बनी रहने दे .............

कुछ तो आपस मे बनी रहने दे
आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे

बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर
अपनी आँखों में नमी रहने दे

मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा
मेरे मौला ये कमी रहने दे

मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ
तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे

गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय"
तू मुझसे ऐसी दुश्‍मनी रहने दे

अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित

Added by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:27pm — 9 Comments

इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं......

मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ

ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ

हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला

हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला

दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर

इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं

वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें

महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे

क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के

चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ

यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता

सबक देती क़ुरान कहती है गीता

हो पैदा ये अहसास…

Continue

Added by ajay sharma on February 2, 2015 at 11:29pm — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service