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वीनस केसरी's Blog – February 2013 Archive (3)

ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें



उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |

झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |



शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,

पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |



गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,

कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |



आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,

जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |



मैंने पल भर झूठ-सच पर…

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Added by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 10:00pm — 29 Comments

ग़ज़ल - आप खुश हैं कि तिलमिलाए हम

एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...



आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |

आपके कुछ तो काम आए हम |



खुद गलत, आपको ही माना सहीह,

जाने क्यों आपको न भाए हम |



आपके फैसले गलत कब थे,

और फिर, सब…

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Added by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:30am — 20 Comments

ग़ज़ल - वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है

मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ

वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |

वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |

यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,

हयात अब कोई मसअला चाहती है |…

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Added by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
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