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Vijay nikore's Blog – February 2017 Archive (2)

विवश वेदना

बियाबान-सी रात, मद्धम है चाँदनी

एक अधूरे रिश्ते के आकुलित अनुभव

बिखरे-बिखरे-से... कोने-कोने में

बेचैन इस दर्द भरे अन्धेरे में

चेहरे पर भय की रेखाएँ



माना कि बीच हमारे अब कोई दीवार

बहुत ऊँची बहुत ऊँची

ढरते-भुरते विश्वास के आईने पर

घावों की छायाओं के धब्बेे

भी गहरे अब बहुत गहरे



फिर भी कुछ जीवित है



समय की टूटी सीढ़ी चढते

क्षण-भर को भी भाव-विभोर हो

आ सको तो आओ

पाओ मुझमें…

Continue

Added by vijay nikore on February 5, 2017 at 5:07pm — 15 Comments

स्नेह-लहरी

हर पर्व से पहले आते थे तुम

हँसती-हँसती, मैं रंगोली सजा देती ...

नाउमीदी में भी कोई उमीद हो मानो

मेरी अकुलाती इच्छाएँ तुम्हारी राह तकती थीं

श्रद्धा के द्वार पर अभी भी मेरे प्रिय परिजन

सूर्य की किरणें ठहर जाती हैं

चाँद जहाँ भी हो, पर्व की रातों कोई आस लिए

आकर छत पर रुक जाता है

तन्हा मैं, सोच-सोच में

ढूँढती हूँ बाँह-हाथ तुम्हारे

स्पर्श से पूर्व विलीन हो जाते हैं स्पर्श

उदास साँवले दिन की…

Continue

Added by vijay nikore on February 3, 2017 at 11:50am — 15 Comments

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