For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – February 2017 Archive (8)

लोकतंत्र का ताजमहल (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

क्षितिज पर अद्भुत नज़ारा था। पर्यटक-स्थल पर राजनीति-शास्त्र के प्रोफेसर वर्मा जी स्टाफ के बाक़ी लोगों की गतिविधियाँ ध्यान से देख रहे थे। कोई ढलती शाम के आसमान की फोटो ले रहा था, कोई अपनी सेल्फ़ी। त्रिपाठी जी उनके पास आकर संबंधित कविता सुनाने लगे। जब उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया तो त्रिपाठी जी बोले- "वर्मा जी, कहाँ खो गये? फिर कोई गहन चिंतन?"



"हाँ भाई, यह दृश्य देखकर कुछ मशहूर नारे याद आ गये थे!"



"नारे! इस वक़्त! कौन से?" त्रिपाठी जी ने पूछा।



आसमान की ओर हाथ… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 26, 2017 at 8:16am — 3 Comments

ताले-चाबी वाले (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

रेल यात्रियों में से एक ताले-चाबी वाला कारीगर भी था, सो चल पड़ी चर्चा 'तालों' और 'चाबियों' की, नाना-प्रकार की 'तिजोरियों, सूटकेसों और अलमारियों'' की और कारगर विभिन्न प्रकार की 'चाबियों' की!



"तुम्हारी तो चाँदी है, हर ताला खोलने की असली जैसी नकली चाबी बना लेते होगे!" एक यात्री ने उस ताले-चाबी वाले से पूछा।



"हमारी रसोई का ही ताला खोलती हैं हमारी बनायी ये चाबियाँ जनाब, धंधे में अंधे होकर हम नाजायज़ काम नहीं करते!" उसने जवाब दिया ही था कि दूसरा यात्री बोल पड़ा- "सही कह रहा है… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 25, 2017 at 5:30pm — 7 Comments

स्वतंत्र, परतंत्र या परजीवी (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चारों तरफ़ हाल बेहाल हैं। 'कुछ लोग' बहुत 'चौंक' रहे हैं। 'कुछ लोगों' के मन में बहुत सारे 'सवाल' हैं। बहुत से सवाल ज्वलंत हैं, कुछ सामयिक हैं और कुछ एक असामयिक या आकस्मिक, जबकि कुछ एक सवाल ऊट-पटांग भी हैं। लेकिन अधिकतर सवाल किसी भी रूप या विधा में अभिव्यक्त नहीं हो पा रहे हैं। डर है कि किसी 'सवाल' को अभिव्यक्त करने पर कोई 'बबाल' न मच जाये।



लेकिन 'कुछ लोग' हर हाल में हालात के मद्देनज़र ज़ोख़िम लेकर अपने-अपने तरीक़ों से 'सवाल' उठा रहे हैं। उन पर मीडिया, नेता और धर्म-गुरू अपनी-अपनी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 24, 2017 at 3:40am — 4 Comments

भूखे पेट (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

'भूखे पेट' (लघुकथा) :



सफ़र की थकान दूर करते हुए अगले गंतव्य हेतु रेलगाड़ी की प्रतीक्षा करते-करते एक युवक अब भूख भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। अपने झोले में से टिफिन निकाल कर उसने अचार के साथ पूरी खाना शुरू किया ही था कि फटेे-चिथे कपड़े पहने एक दाढ़ी वाला बुज़ुर्ग कांपता लड़खड़ाता हुआ सा उसके बगल में आकर बैठ गया। वह कभी उस युवक को देखता, तो कभी उस साँड़ को जो साफ-सुथरे प्लेटफार्म पर खड़ी रेलगाड़ी की खिड़की से यात्रियों से स्वल्पाहार ग्रहण कर रहा था और कुछ अंग्रेज़ यात्री अपने कैमरों… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 18, 2017 at 7:18pm — 9 Comments

बन्दर और मदारी (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

उसका निरंतर विकास हो रहा है। वह बन्दर ही है, लेकिन बन्दर ही कहलाना नहीं चाहता है। उसने अपनी आँखों पर या कानों पर या मुख पर हथेलियां रखना छोड़कर आदर्शों पर न चलने का फैसला भी कर लिया है। वह अब किसी मदारी के इशारे पर भी नहीं चलना चाहता है। वह अब खुद मदारी बनना चाह रहा है। अब उसके अपने फैसले होते हैं, कब-कितना नाचना है? किसको-कितना नचाना है? लेकिन उसे यह पता नहीं है कि 'फैसले' अब उसके 'मदारी' माफ़िक हो गये हैं। 'फैसले' उसे नचाते रहे हैं! 'फैसले' के जवाब में 'फैसले' हो रहे हैं। 'फैसले' की… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2017 at 1:29am — 6 Comments

ग़ुब्बारों और यथार्थ के बीच (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सब उड़ान भर रहे थे अपने-अपने 'ग़ुब्बारों' में सवार होकर। कुछ 'धार्मिक कट्टरता' के, कुछ 'अत्याधुनिकता' के कुछ किसी 'राजनीतिक दल' के, कुछ 'उद्योगों' के ग़ुब्बारों में उड़ रहे थे, तो कुछ 'उच्च शिक्षा' और 'उच्च तकनीक' के। जबकि कुछ लोग 'अंधविश्वास' या 'कुरीतियों' या 'भ्रष्टाचार' के ग़ुब्बारों में उड़ रहे थे। कुछ ऐसे भी थे, जो 'दिवास्वप्न' या 'कोरी कल्पनाओं' के ग़ुब्बारों में अनजानी दिशाओं में उड़ते हुए कभी ख़ुश हो रहे थे, कभी उलझ रहे थे।



"तेरा ग़ुब्बारा कौन सा है, तुम क्यों नहीं उड़ते इस… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2017 at 5:24pm — 5 Comments

स्लो मोशन या उल्टी गिनती (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"भगवान समय-समय पर मनुष्य को उसकी औक़ात से वाक़िफ़ करवाता रहता है !" टेलीविजन पर भूकम्प की ख़बरें देखते हुए जोशी जी ने अपने मित्र से कहा।



"सच कहा तुमने ! वक़्त और हालात के साथ इन्सान इतना स्वार्थी हो गया कि प्रकृति, पर्यावरण और भगवान से भी रिश्ते बिगाड़ बैठा !"



मित्र की इस बात पर जोशी जी बोले- "वक्त और हालात सदा बदलते रहते हैं, लेकिन अच्छे रिश्ते और सच्चे दोस्त कभी नहीं बदलते ? बिगड़ते तब हैं, जब सोच बिगड़ जाती है ! सोच ही तो पहले प्रदूषित हुई है, पर्यावरण बाद में!… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 7, 2017 at 6:51pm — 7 Comments

भगवान तू है कहां (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मैं धर्म, धार्मिक ग्रंथों और प्रवचनों की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चे सुख की तलाश करता हुआ ईश्वर को तलाश रहा था!" अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक आदमी ने अपने साथियों से कहा।



दूसरे ने अपने अनुभव सुनाते हुए कहा- "मैं विज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी यंत्र-तंत्र की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चा सुख तलाशते हुए भगवान को चुनौती देकर विज्ञान को ही भगवान समझने लगा!"



तीसरा अपने दोनों साथियों से बोला- "मुझे जब जैसा मौक़ा मिला उसी अनुसार सीढ़ियों को चुनता रहा धन को ही भगवान समझ कर। कभी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 3, 2017 at 11:30pm — 8 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service