बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।
" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से…
Added by विनय कुमार on February 13, 2016 at 11:48pm — 6 Comments
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