2122 2122 2122 212
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झील के पानी को फिर से बादलों ताजा करो
नीर हो झरते रहो तुम मत कभी ठहरा करो
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सिर्फ गर्जन के लिए कब धूप जनती है तुम्हें
प्यास खेतों की बुझाओ खेल से तौबा करो
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जान का भय किसलिए है परहितों की बात जब
धुंध का परदा हटाओ दूर तक देखा करो
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सूर्य के तुम वंशजों में छोड़ दो मायूसियाँ
त्याग दो जीवन भले ही तम को मत पूजा करो
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यूँ अँधेरों की तिजारत …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 6:00am — 14 Comments
2122 2122
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पाप का अवसान मागूँ
पुण्य का उत्थान मागूँ
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सत्य की लम्बी उमर हो
झूठ को विषपान मागूँ
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व्यर्थ है आकाश होना
सिर्फ लधु पहचान मागूँ
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राजपथ की राह नीरस
पथ सदा अनजान मागूँ
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स्वर्ण देने की न सोचो
मैं तो बस खलिहान मागूँ
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कोयलों का वंश फूले
आज यह वरदान मागूँ
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साथ ही पर काक के हित
इक मधुर सा गान मागूँ
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मिल गए नवरात …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2015 at 11:31am — 26 Comments
2122 2122 212
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दोष ऐसा आ गया अब शील में
फासले कदमों के बदले मील में
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भर लिया तम से मनों को इस कदर
रोशनी भी कम लगे कंदील में
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देह होकर देह सा रहते नहीं
टाँगते खुद को वसन से कील में
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युग नया है रीत भी इसकी नई
आचरण से ध्यान जादा डील में / डील-दैहिक विस्तार
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अब बचे पावन न रिश्ते दोस्तो
तत तक बदले है खुद को चील में
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भय सताता क्या …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 7:00am — 25 Comments
1222 1222 1222 1222
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बुरे की कर बुराई अब (बुरे को अब बुरा कह कर) बुराई कौन लेता है
यहाँ रूतबे के लोगों से सफाई कौन लेता है
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हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो
किसी की पीर हरने को बिवाई कौन लेता है
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सभी हम्माम में नंगे किसे क्या फर्क पड़ता अब
जमाना भी न देखे जगहॅसाई कौन लेता है
***
मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब
सच्चाई …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2015 at 11:00am — 18 Comments
2122 2122 2122
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डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
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एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
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थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
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आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
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कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments
1212 1122 1212 22
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किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
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बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
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बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
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चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
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बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
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कोशिशें पुरखों की यारों बेअसर मत कीजिए
नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए
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मिट गये ये तो नरक सी जिंदगी हो जाएगी
प्यार को सौहार्द को यूँ दरबदर मत कीजिए
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कर रहे हो कत्ल काफिर बोलकर मासूम तक
नाम लेकर धर्म का ऐसा कहर मत कीजिए
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वो शहीदी कैसे जिनसे है फसादों की फसल
उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए
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दुश्मनी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments
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