1222 1222 1222 1222
न जाने हाथ में किसके है ये पतवार मौसम की
बदल पाया न कोई भी कभी रफ्तार मौसम की /1
सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की
समझ चालें न आएँगी कभी अय्यार मौसम की /2
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की /3
उजाड़े जा रहा क्यों तू धरा से रोज ही इनको
दवाई पेड़ पौधे हैं समझ बीमार मौसम की /4
न आए हाथ उतने भी लगाए बीज थे जितने
पड़ी कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:55am — 13 Comments
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प्यार के इस माह की यारो कहानी क्या कहें
बिन किसी के थम गयी है जिंदगानी क्या कहें /1
यूँ कभी खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी
दर्द से हट आँसुओं के अब तो मानी क्या कहें /2
आजकल बैसाखियों पर वक्त जाने क्यों हुआ
थी कभी किससे जवाँ वो इक रवानी क्या कहें /3
आप कहते हो अकेलापन सताता है बहुत
साथ अपने तो सदा यादें पुरानी क्या कहें /4
खुश रहे बस हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:27am — 10 Comments
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कौन कहेगा यारो बोलो बस्ती की मनमानी की
दोष लगाता हर कोई है गलती कहकर पानी की /1
राह रही जो नदिया की वो घर आगन सब रोक रहे
खादर बंगर पाट रखी है नींव नगर रजधानी की /2
भीड़ बड़ी हर ओर साथ ही कूड़े का अम्बार बढ़ा
धन के बल पर नदी मुहाने आज पँहुच शैलानी की /3
हम को नादाँ कहकर कोई बात न कहने देते पर
यार सयानों ने हर दम ही बात बहुत बचकानी की /4
माना सुविधाओं का यारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2016 at 12:23pm — 6 Comments
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इस नगर में हर किसी को इक फसाना चाहिए
ऊँघते को ठेलते का इक बहाना चाहिए /1
कब से ठहरा ताल अब तो मारिए कंकड़ जरा
जिंदगी का लुत्फ कुछ तो यार आना चाहिए /2
बेबसी क्यों ओढ़नी जब हाथ लाठी कर्म की
द्वार किस्मत का चलो अब खटखटाना चाहिए /3
चोट खाकर देखिए खुद दर्द की तफतीस को
बोलना फिर दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए /4
हो गयी हो पीर पर्वत हर दवा जब बेअसर
आँसुओं को किसलिए फिर छलछलाना चाहिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 15, 2016 at 12:22pm — 6 Comments
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सदा सम्मान इकतरफा कहाँ तक फूल को दोगे
तिरस्कारों की हर गठरी कहाँ तक शूल को दोगे /1
उठेगी तो करेगी सिर से पाँवों तक बहुत गँदला
अगर तुम प्यार का कुछ जल नहीं पगधूल को दोगे /2
नदी आवारगी में नित उजाड़े खेत औ बस्ती
कहाँ तक दोष इसका भी कहो तुम कूल को दोगे /3
तुम्हारी सोच में फिरके उन्हें ही पोसते हो नित
सजा तसलीमा रूश्दी को दुआ मकबूल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 9, 2016 at 11:00am — 12 Comments
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सुनते सुनते गीत प्रेम का क्या सूझी पुरवाई को
कोयल आँसू भर भर देखे आग लगी अमराई को /1
बात कहूँ तो बन जाएगी जग की यार हँसाई को
जैसे तैसे झेल रहा हूँ जालिम की रूसवाई को /2
दिन तो बीते आस में यारो शायद चलती राह मिले
किन्तु पुराने खत पढ़ काटा रातों की तनहाई को /3
वो साहिल की रेत देख कर चाहे यूँ ही लौट गया
ख्वाबों में देखेगा लेकिन दरिया की गहराई को /4
भर कर जेबें रोज चढ़े है मस्ती को सैलानी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:05am — 16 Comments
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