कब कहता हूँ आम आदमी मुझको अपने पैसे दे
हो सकता है तुझ से कुछ तो क़ुर्बानी में रिश्ते दे।१।
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दिल्ली जलती है जलने दे मुझे सियासत करने दे
हर नेता का ये कहना है कुछ तो कुर्सी फलने दे।२।
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ये लाशों के ढेर हमेशा सीढ़ी बन कर उभरे हैं
इनको मत रो इन पर मुझको पद की खातिर चढ़ने दे।३।
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खूब सुरक्षा मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2020 at 8:30am — 13 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
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उनका वादा राम का वादा समझ बैठे थे हम
हर सियासतदान को सच्चा समझ बैठे थे हम।१।
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कह रहे थे सब यहाँ जम्हूरियत है इसलिए
देश में हर फैसला अपना समझ बैठे थे हम।२।
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गढ़ गये पुरखे हमारे बीच मजहब नाम की
क्यों उसी दीवार को रस्ता समझ बैठे थे हम।३।
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आस्तीनों में छिपे विषधर लगे फुफकारने
यूँ जिन्हें जाँ से अधिक प्यारा समझ बैठे थे हम।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2020 at 8:28am — 9 Comments
झूठी बातें कह कर दिनभर जब झूठे इठलाते हैं
हम सच के झण्डावरदारी क्यों इतना शर्माते हैं।१।
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अफवाहों के जंगल यारो सभ्य नगर तक फैल गये
क्या होगा अब विश्वासों का सोच सभी घबराते हैं।२।
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कैसे सूरज चाँद सितारे अब तक चुनते आये हम
बात उजाले की कर के जो नित्य अँधेरा लाते हैं।३।
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नित्य हादसे होते हैं या उन में साजिश होती है
छोटा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:00am — 8 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
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जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं
हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।
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दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ
जयचन्दी नीयतों में जो रहते इमाम हैं।२।
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उनका भी मान है नहीं केवल लताड़ है
रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।
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नेता सभी हैं एक से जो फूट चाहते
समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2020 at 4:48am — 8 Comments
हर शासन अब गद्दारों को यार बहुत हितकारी है
जो करता है बात देश की उसको बस लाचारी है।१।
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सर्द हवाओं के चंगुल में ठिठुराती आशाएँ बैठी
सुन्दर सपनों की खेती पर पाला पड़ता भारी है।२।
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पहले लगता था हम जैसा गम का मारा कोई नहीं
पर जब देखा पाया दुनिया हमसे भी दुखियारी है।३।
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तुमको भी पत्थर आयेंगे वक्त जरा सा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:30am — 4 Comments
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