अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव
भरी दुपहरी मिल जाती है, जहाँ पेड़ की छाँव।।
*
नगर हमेशा दुख देकर ही, माने अपनी जीत
आँगन चाहे एक नहीं पर, खड़ी बहुत हैं भीत
अपनों की तो बात अलग है, रही गाँव की रीत
किसी पराये का भी दुख में, सहला देता पाँव
अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव।।
*
उसकी माँगें नहीं असीमित, रोटी कपड़ा गेह
जिसे नगर सा नहीं ठाठ से, होता पलभर नेह
मन में सेवाभाव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2023 at 6:17pm — 2 Comments
दिखता है हर ओर यहाँ तो केवल दुख का बौर।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
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घाव कुरेदे पल पल दुनिया कर बैठी नासूर।
इस कारण ही घर कर बैठी पीर यहाँ भरपूर।।
औषध कोई काम न करती मत बोलो अब और।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
शीतल छाँव नहीं है वन में दावानल की आग।
तानसेन की सुता न कोई गाती बादल राग।।
बन्द झरोखों को क्या खोलें उमस भरा जब दौर।।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
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अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 7:31am — 2 Comments
आँखों में घड़ियाली आँसू अधरों पर चिंगारी हो
उन लोगों से बचके रहना जिनमें ढब हुशियारी हो।१।
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सिर्फ जरूरत भर को लोगो पेड़ काटना अच्छा है
हर जंगल को नित्य मिटाने क्यों हाथों में आरी हो।२।
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सभी पीढ़ियों कई युगों की यही धरोहर इकलौती
सिर्फ तुम्हारी एक जरूरत क्यों धरती पर भारी हो।३।
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अल्प जरूरत अति बताकर नष्ट करो मत धरती
आज कहीं तो सुन्दर अच्छे आगत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2023 at 7:01am — 2 Comments
शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर
प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए।।
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भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।
वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।
कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।
ओट पाते वासना के द्वार पलपल खोलता।।
भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।
प्यार करने के लिए तो पूर्ण जीवन चाहिए।।
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देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।
आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।
आज उपमा लिख रही उपभोगवादी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2023 at 6:35pm — 3 Comments
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।
नये वर्ष की अँखियाँ भीगी, बीती जून जुलाई में।।
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हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।
तभी पुरानी राहों ने फिर, सोचा किसने याद किया।।
पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया
कई सूरतें उभरीं मन में, गठरी को जब खोल दिया।।
*
चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।
*
कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments
पग की गति हो चाहे मन्थर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
सूनापन हो या निर्जन हो।
तमस भले ही बहुत सघन हो।।
विचलित थोड़ा भी ना मन हो।
मत पाँवों में कुछ अनबन हो।।
*
शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जो भी इच्छित क्यों सपना हो।
चाहे जितना भी खपना हो।।
हर नूतन पथ बस अपना हो।
धैर्य न डोले जब तपना हो।।
*
मत करना जीवन में अन्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
अंतिम परिणति जैसी भी हो।
जीवन से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 10, 2023 at 12:24pm — No Comments
रूठे हो बहनों से या फिर, मद में अपने चूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।
किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।
हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।
लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।
*
कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2023 at 11:07am — 2 Comments
जिस वसंत की खोज में, बीते अनगिन साल
आज स्वयं ही आ मिला, आँगन में वाचाल।१।
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दुश्मन तजकर दुश्मनी, जब बन जाये मीत
लगते चहुँ दिश गूँजने, तब बसन्त के गीत।२।
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आँगन में जिस के बसा, बालक रूप वसन्त
जीवन से उसके हुआ, हर पतझड़ का अन्त।३।
*
कहने को आतुर हुए, मौसम अपना हाल
वासन्ती संगत मिली, हुए मूक वाचाल।४।
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करने कलियों को सुमन, आता है मधुमास
जिसके दम पर ही मिटे, हर भौंरे की प्यास।५।
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आस बँधा कर पेड़ को, हवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 1:00pm — 3 Comments
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