पहाड़ पर
चढ़ना भी पहाड़
सोचा ही नहीं
स्नेह आशीष
से भरा रहा सदा
माँ का आंचल
xxxxx
महकी हवा
वासंती हैं नजारे
फागुन आया ।
मादक टेसू
रंग गई चूनर
फागुन आया ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 22, 2017 at 4:48pm — 2 Comments
सहमी सर्दी
कारागृह में अब
फागुन आया
सड़क संग
चलती ही रहती
पगडंडी भी
टंगे रहते
सोने के झूमर से
अमलतास
…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 16, 2017 at 4:00pm — 4 Comments
सुबह-सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर ही रही थी कि ऊपर वाली चाची की सीढ़ियों से उतरने की धमक के साथ ही उनकी आवाज सुनाई दी – "ए नीलम, सुनलू ह· कि ना, कमली म·र गइल ।" मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया पर संस्कारगत आदत के मारे कुछ जतला नहीं पायी । इतना तो समझ आ ही गया कि अब आज का पहला पीरियड अटेण्ड नहीं कर पाऊँगी । अब चाची आ ही गयी हैं तो थोड़ा बैठना ही ठीक होगा और मैंने उन्हें बैठा कर झट पानी का ग्लास पकड़ाया ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 15, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
मन की बात
करते, कभी जाना
मन की बात
समझौते हैं
समझ का फेर, जो
समझ सको
रिश्ते नाते तो
ज्यों पतंग की डोर
उलझे जाते
मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by Neelam Upadhyaya on February 6, 2017 at 5:02pm — 3 Comments
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