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डॉ. सूर्या बाली "सूरज"'s Blog – March 2016 Archive (2)

ज़िंदगी ही हो गयी क़ातिल करूँ तो क्या करूँ

हो गया दिल इश्क़ में बिस्मिल करूँ तो क्या करूँ

ज़िंदगी ही हो गयी क़ातिल करूँ तो क्या करूँ



इक तेरे दर के सिवा लगता नहीं है दिल कहीं

रास आती है नहीं महफिल करूँ तो क्या करूँ



तू ही साँसों में है धड़कन मे ख़यालों में है तू

बस तुम्ही को चाहता है दिल करूँ तो क्या करूँ



लीक से हटकर अलग चलने की है फ़ितरत मिरी

भीड़ में होता नहीं शामिल करूँ तो क्या करूँ



इक तेरे जाने से रस्ते हो गए मुश्किल मिरे

दूर अब लगने लगी मंज़िल करूँ तो क्या… Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 29, 2016 at 10:00am — 8 Comments

प्यास होंठों पे निगाहों में उदासी रह गई

ग़ज़ल



जबसे उनसे मिलने की चाहत अधूरी रह गई

प्यास होंठों पे निगाहों में उदासी रह गई



बैठकर धीरे से लम्बी कार में वो चल दिए

बैलगाड़ी प्यार की पीछे हमारी रह गई



फूल गुलदस्ते किताबें ख़त जला डाले सभी

फिर भी उनके प्यार की दिल में निशानी रह गई



दिन महीने साल बीते जाम आँखों से पिए

मुद्दतों के बाद भी मुझमें ख़ुमारी रह गई



हम मिले मिलके चले कुछ दूर राहे इश्क़ में

मिल गई मंज़िल मगर कुछ बेक़रारी रह गई



बेचकर सबकुछ भी दे… Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 25, 2016 at 12:30pm — 1 Comment

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