1222 1222 122
मिलेगा क्या तुम्हें परदेश जा कर
रही माँ पूछती आँसू बहा कर
तड़पता छोड़कर तन्हा शजर को
परिंदा उड़ गया पर फड़फड़ा कर
बहल जाये विकल मासूम बचपन
नजर भर देख ले माँ मुस्कुरा कर
है पल पल टूटती साँसों की माला
बिता लो चार पल ये हँस हँसा कर
न जाओ छोड़कर 'ब्रज' कुंज गलियाँ
दरख्तों ने कहा ये कसमसा कर
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 27, 2017 at 11:00pm — 10 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 19, 2017 at 7:30pm — 6 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:34pm — 8 Comments
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