ग़ज़ल (दोस्तों की महरबानी हो गई )
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फ़ाईलातुन--फ़ाईलातुन --फाइलुन
यूँ न उनको बदगुमानी हो गई |
दोस्तों की महरबानी हो गई |
भूल बचपन के गये वादे सभी
उनको हासिल क्या जवानी हो गई |
नुकताची को क्या दिखाया आइना
उसकी फ़ितरत पानी पानी हो गई |
यूँ नहीं डूबा है मुफ़लिस फ़िक्र में
उसकी बेटी भी सियानी हो गई |
अजनबी के साथ क्या कोई गया
ख़त्म उलफत की कहानी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 18, 2017 at 8:48pm — 6 Comments
ग़ज़ल
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल )
क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |
दिखा कर गया इक झलक क्या कोई
मुसलसल ही हम आँख मलते रहे |
यही तो है गम प्यार के नाम पर
हमें ज़िंदगी भर वो छलते रहे |
मिली हार उलफत के आगे उन्हें
जो ज़हरे तअस्सुब उगलते रहे |
तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ
वफ़ा के दिए सारे जलते रहे |
असर होगा उनपर यही सोच कर
निगाहों से आँसू…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2017 at 8:51pm — 16 Comments
(मफ़ाईलुन-मफ़ाईलुन-फऊलॅन)
हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है |
ज़मीं पर कोई जन्नत ढूंढता है |
दगा फ़ितरत हसीनों की है लेकिन
कोई इन में मुरव्वत ढूंढता है |
समुंदर से भी गहरी हैं वो आँखें
जहाँ तू अपनी चाहत ढूंढता है |
मिलेगा तुझको असली लुत्फ़ गम में
फरह में क्यूँ लताफत ढूंढता है |
हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत
तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है |
सियासी लोग होते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
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