२११२/ १२१२ // २११२/ १२१२
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जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,
और वो लम्हा बीत कर अपनी ही मौत मर गया.
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मेरा सफ़र तवील है दूर हैं मंज़िलें मेरी
दुनिया फ़क़त सराय है रात हुई ठहर गया.
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कोई छुअन थी मलमली कोई महक थी संदली
ख़ुद में जो उस को पा लिया मुझ में जो मैं था मर गया.
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सारे तिलिस्म तोड़ कर अपनी अना को छोड़ कर
तेरे हवाले हो के मैं अपने ही पार उतर गया.
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पीठ थी रौशनी की ओर साये को देखते रहे
“नूर” से जब नज़र…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 10:04pm — 12 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२
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दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा
रह गई थीं कुछ जो बाकी तीलियाँ गिनता रहा.
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यादों के बिल से निकलती चींटियाँ गिनता रहा
था कोई दीवाना टूटी चूड़ियाँ गिनता रहा.
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मुझ से मिलता-जुलता लड़का आईने से झाँक-कर
मेरे चेहरे पर उभरती झुर्रियाँ गिनता रहा.
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होश मेरे गुम थे मैंने जब किया इज़हार-ए-इश्क़
और वो नादान कच्ची इमलियाँ गिनता रहा.
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एक दिन पूछा किसी ने कौन है तेरा यहाँ
दिल हुआ रुसवा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 4:46pm — 40 Comments
अरकान: नामालूम
लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह
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जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.
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रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी
लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.
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लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों
खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.
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तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम …
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 24, 2018 at 9:37pm — 24 Comments
सुझाव / इस्लाह आमंत्रित
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जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है
क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?
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क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए
टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए
तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब
इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की
बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?
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इक पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा
तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और
इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ
यकबयक बिखर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:30am — 11 Comments
२२१२/२२१२
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माँ भारती की शान में,
वो रोज़ नव परिधान में.
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क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी
समवेत गर्दभ गान में.
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सब हो गए कितने पतित
सोचो कथित उत्थान में.
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हर बैंक कर देंगे सफा
वो स्वच्छता अभियान में.
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इन्सानियत बाक़ी कहाँ
अब है बची इन्सान में.
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वो माफ़िनामे लिख गये
अपना यकीं बलिदान में.
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कैसे मसीहा देख लूँ
उस इक निरे नादान में.
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करते दहन है खूँ फ़िशां
कत्था लगा कर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:12pm — 14 Comments
१२२२/१२२२/१२२
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ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है
मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.
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अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन
तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.
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हमारी बात का मतलब अलग था,
अगरचे आप ने समझा ग़लत है.
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मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा
मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.
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कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों
हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.
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कहे नंगे को नंगा एक बच्चा
कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.
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ग़लत साबित मुझे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 10:25pm — 16 Comments
२२१२ १२२ २२१२ १२ २
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ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,
इस पार बच गया तो उस पार मार देगा.
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आदत सी पड़ गयी है अब नफ़रतों की मुझ को
इतना न मुझ को चाहो ये प्यार मार देगा.
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कितना बचाऊँ लेकिन है तज्रबा... मुकद्दर,
इक रोज़ मेरे सर पर दीवार मार देगा.
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ये हक़ बयानी का इक औज़ार था मगर अब,
सच बोल दे कलम गर अख़बार मार देगा.
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कोचिंग की आशिक़ी में वह मुँह चिढ़ाता शनिचर,
लगता था जैसे हम को इतवार मार देगा.
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बोली बढ़ा घटा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:00pm — 15 Comments
22/ 22/ 22/ 22
ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं,
हारे हैं .....पर मरे नहीं हैं.
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और कुछ इक दिन ज़ुल्म चलेगा,
अभी पाप-घट भरे नहीं हैं.
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खोट है उस की नीयत में कुछ
पूरे हम भी खरे नहीं हैं.
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कौन सी जन्नत कैसी क़यामात
ये सब मौत से परे नहीं हैं.
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कहते हैं वो अपने मन की
पर मन की भी करे नहीं हैं.
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गर्दभ होते ...घास तो चरते
साहिब.. घास भी चरे नहीं हैं.
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बोल रहे हैं अपने कलम से
“नूर जी” चुप्पी धरे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 6, 2018 at 9:33pm — 11 Comments
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