2122 2122 2122 212
मोतियों को गूंथकर धागा सदा हँसता गया
जंग खाये रास्तों को कांरवाँ चमका गया
ओस से भीगे बदन पर थी नजर खुर्शीद की
प्यास उसकी खुद बुझाकर फूल इक खिलता गया
बन गये अफ़साने कितने और नगमें जी उठे
जब जमीं ने सर उठाया आसमां झुकता गया
कहकशाँ में यूँ नहाई चाँदनी जल्वानशीं
नूर उसका देखकर महताब भी पथरा गया
हुस्न की मलिका कली की देख वो अँगड़ाइयां
चूम कर रुख्सार उसके दफअतन भँवरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2015 at 6:30pm — 24 Comments
प्रधान मंत्री का कारवाँ चला जा रहा था कि बीच में एक जंगल से गुजरते हुए साइड विंडो से अचानक दिखाई दिया, कुछ स्त्रियाँ सिर पर लकड़ियों की गठरिया लिए जा रही थीं उनमे एक वृद्धा जो पीछे रह गई थी अभी गठरिया बाँध ही रही थी कि प्रधान मंत्री जी ने गाड़ी रुकवाई और उस वृद्धा से बातचीत करने पंहुच गए.|
“किस गाँव की हो माई? इस उम्र में ये काम!.. तुम्हारे बच्चे’?
“क्यूँ नहीं साब जी, एक बिटवा है जो फ़ौज में है, पोता है, बहू है” वृद्धा बोली.
“बेटा पैसा तो भेजता होगा”? “हाँ जी, जब से…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2015 at 11:20am — 39 Comments
“इस सन्डे कहाँ पार्टी करें कोमल”? नील ने पूछा. “यू लाइक मॉल चलते हैं” “अरे यार, फिर वहीँ.... बोर हो गए हमेशा मॉल मॉल में जाते कोई नई जगह... “फिर उस भूतिया महल में चलें? है हिम्मत’? बीच में ही बात काटती हुई आस्था बोली| “ना बाबा ना मैं तो नहीं जा सकती तू जा सकती है”?
“मैं भूतों में विश्वास नहीं करती हम आज के युग में जीते हैं क्या पुराने लोगों जैसी घिसी पिटी बातें करते हो और फिर हमारे साथ विश्वास भी तो है उस पर विश्वास करना चाहिए सब भूतों को ठिकाने लगा देगा हाहाहा”..…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 13, 2015 at 7:30pm — 24 Comments
१२२ १२२ २२१ २१२ २१२
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये
बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये
खुदा जाने कैसे किस कांच के बने थे अजब
दरकते रहे पत्थर आईने सँवरते गये
दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा
सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये
ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा
तपे रोज जितना हम और भी निखरते…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2015 at 9:34am — 25 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २
शर्मिंदा आज किसी रूह की पैदाइश होगी---रूह में ह साइलेंट है
गैरों के आगे फिर सूरत की नुमाइश होगी
फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख भरम
फिर आज किसी की किस्मत की आजमाइश होगी---(आजमाइश की मात्रा गिराकर अजमाइश किया है)
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी
हँस हँस के मिटेगी जल जल के लुटेगी रात शमा
धज्जी धज्जी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 2, 2015 at 10:30am — 24 Comments
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