बह्र --हजज मुसद्दस सालिम
१२२२ १२२२ १२२२
गुलाबी रंग दो रुख्सार होली में
खुमारी भंग की हो यार होली में
मिटा दो दुश्मनी मिलकर गले यारो
मुहब्बत का करो इजहार होली में
कहानी प्रीत की फिर से नई लिक्खो
पुरानी भूल कर तकरार होली में
अनेकों रंग मिलकर एक हो जाओ
करो मत धर्म का व्यापार होली में
खुले दिल से बिना डर के खिलें कलियाँ
हटाओ रास्ते से ख़ार होली में
मिटाकर दूरियाँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2016 at 10:10am — 4 Comments
“हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”
“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?
“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:13pm — 12 Comments
2122 1122 1122 22
शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना
मिलके खुर्शीद से जज्बात रूहानी होना
उन्स की मय से लबालब है ग़ज़ल का सागर
, डूबकर उसमे सुखनवर का शराबी होना
बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह
मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना
पाक उल्फत या मुहब्बत या इबादत समझो
कृष्ण की चाह में मीरा का दिवानी होना
वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ
चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:40pm — 26 Comments
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