(प्रेमी की मनः स्थिति )
कोई नहीं है चाहता विछड़े वो यार से,
दोनो का यदि मिलन हो विदाई भी प्यार से .
हो आत्मा में वास तो फिर प्रियतमा मिले ,
होता चमन गुलिस्तां है जैसे बहार से ..
* * * * *
मुझको ये था यकीन कि है प्यार भी तुम्हे,
मेरे बगैर जीना तो दुश्वार है तुम्हे.
ये बंदिशें थीं प्यार की जो उलझने मिली,
ये सोंचना गलत था कि स्वीकार है…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 23, 2012 at 12:00am — 16 Comments
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 1:30am — 13 Comments
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