गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२, ११२२, २२
आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.
मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.
शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'
संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.
ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,
चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.
ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,
लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.
वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,
होलिका खार की हर बार जलाया…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2016 at 12:30am — 4 Comments
कलाधर छंद......होलिका दबंग है
विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५ तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है. इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं. संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव" में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..
यथा----…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2016 at 12:00pm — 4 Comments
गज़ल.....१२२ १२२ १२२ १२२
हमारे घरों का उजाला लिये जो.
हंसीं शशि मलाला सितारा लिये जो.
लड़ी गोलियों से बिना खौफ खाये
खुले आसमां का हवाला लिये जो.
दुआ यदि सलामत कयामत भी हारे
ये तारिख बलन्दी की माला लिये जो.
चुरा कर खुशी ज़िन्दगी लूट लेते-
उन्हीं से मुहब्बत–फंसाना लिये जो.
ये होली-दिवाली मिले ईद-सत्यम
हंसी फाग समरस तराना लिये जो.
सुखनवर....केवल प्रसाद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 11:58am — 9 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 10:31am — 2 Comments
पीढ़ियां !
सीढ़ियों पर चढ़ कर
पीढ़ियां !
थूंकती आसमान पर
धरा आर्द्रवश सहेज लेती
नदियों के कछार
दलदल - सदाबहार वन
आमंत्रित मेघ
बरसते नहीं.
पीढ़ियां !
असमय कड़क कर चमकतीं
गिरती बिजलियां
जलते घास-पूस के छप्पर
ढह जाते दुर्ग
सम्मान के...
संस्कृति के.
बिखरे अवशेष कराहते
खण्डहर में उग आते बांस
सीढ़ियां बनने को उत्सुक
पीढ़ियां उत्साह में फिसल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2016 at 8:30am — No Comments
सावन के दिन झर गये, ठरी पूस की रात.
रंग बसंती रो रही, पतझड़ करते घात.१
आंखों का सावन कभी, हुआ न तन का मीत.
कहें बसंती-फाग रस, पतझड़ जग की रीत.२
वन उपवन नद ताल को, देकर दु:ख अतीव.
दशा दिशा श्रुति ज्ञान सब, बिगड़े मौसम जीव.३
सरोकार रखते नहीं, जो समाज के साथ.
श्वेत वस्त्र उनके मगर, रंगे रक्त से हाथ.४
तंत्र मंत्र हर यंत्र जब, हारे हरि का नाम.
कृषक छात्र जन आज खुद, हुये कृष्ण-बलराम.५
राम…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
नवगीत........सेंभल के फूल
खिले जो फूल सेंभल के
रहे वह मात्र दस दिन के
वो दुनियां देख न पाये
अहं के झूठ के साये
लड़े हर वक्त मौसम से
हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के
रुई की नर्म फाहें उड़
गगन को भेदना चाहें
हवा रुख को बदल देती
उगाती रक्त की बांहें.
पकड़ कर ठूंसते-पीटें
लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के
हवाओं से भरे फूले
निशक्तों…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
कुण्डलिया
धुंआ हवा को छेड़ती, पानी करे पुकार.
धरती निशदिन लुट रही, अम्बर है लाचार.
अम्बर है लाचार, प्रेम की वर्षा सूखी.
सरिता नदिया ताल, रेत में उलझी रूखी.
सूरज रखता खार, करें क्या सत्यम-फगुवा.
मानव अति बेशर्म, उड़ाता खुद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2016 at 9:55pm — No Comments
गज़ल............उसी से दिल्लगी...
बहरे रुक्न.....हज़ज़ मुसम्मन सालिग
दिखा कर रोशनी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
सघन तम में बसी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
रही चर्चा यही जिसने किया है सृष्टि को पावन.
नहीं मिलती फली जिसने किया है सृष्टि को पावन.
हवाओं में, गुबारों में, समन्दर में वही साया
कहे मुझको परी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
दिवाकर सांझ से मिलकर सितारे रात से कहते
वही सबसे बली जिसने किया है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 3, 2016 at 10:12pm — 8 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |