रोला छंद :-
धड़की बन कर याद , सुहानी वो बरसातें ।
दो अधरों की पास, सुलगती दिल की बातें ।
अनबोली वो बात, प्यार का बना फसाना ।
धड़के दिल के पास, मिलन का वही तराना ।
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दिन भर करते पाप, शाम को फेरें माला ।
उपदेशों के संत, साँझ को पीते हाला ।
पाखंडी संसार , यहाँ सब झूठे मेले ।
ढोंगी करता मौज , सज्जन दु:ख ही झेले ।
सुशील सरना / 31-3-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 31, 2022 at 3:00pm — 6 Comments
रोला छंद .....
मधुशाला में जाम, दिवाने लगे उठाने ।
अपने -अपने दर्द, जाम में लगे भुलाने ।
कसमें वादे प्यार ,सभी हैं झूठी बातें ।
आँसू आहें अश्क, प्यार की हैं सौग़ाते ।
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दमके ऐसे गाल, साँझ की जैसे लाली ।
मृग शावक सी चाल ,चले देखो मतवाली ।
मदिरालय से नैन, करें सबको दीवाना ।
अधरों पर मुस्कान, प्यार का मधुर तराना ।
सुशील सरना / 29-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 29, 2022 at 9:40pm — 6 Comments
यथार्थ के दोहे .....
पाप पंक पर बैठ कर ,करें पुण्य की बात ।
ढोंगी लोगों से मिलेेें, सदा यहाँ आघात ।।
आदि -अन्त के भेद को, जान सका है कौन ।
एक तीर पर शोर है, एक तीर पर मौन ।।
आदि- अन्त का ग्रन्थ है, कर्मों का अभिलेख ।
जन्म- जन्म की रेख को,देख सके तो देख ।।
कितना टाला आ गई, देखो आखिर शाम ।
दूर क्षितिज पर दिख रहा, अब अन्तिम विश्राम ।।
तृप्ति यहाँ आभास है, तृष्णा भी आभास …
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 26, 2022 at 3:30pm — 13 Comments
पाप.....
कितना कठिन होता है
पाप को परिभाषित करना
क्या
निज स्वार्थ के लिए
किसी के उजाले को
गहन अन्धकार के नुकीले डैनों से
लहूलुहान कर देना
पाप है
क्या
अपने अंतर्मन की
नाद के विरुद्ध जाना
पाप है
क्या
किसी की बेबसी पर
अट्टहास करना
पाप है
क्या
अन्याय के विरुद्ध मौन धारण कर
नज़र नीची कर के निकल जाना
पाप है
वस्तुतः
सोच से निवारण तक …
Added by Sushil Sarna on March 25, 2022 at 8:14pm — 2 Comments
रोला छंद .....
साबुन बचा न शेष, देह काली की काली ।
पहन हंस का भेष , मनाये काग दिवाली ।
नकली जग के फूल, यहाँ का नकली माली।
सत्य यहाँ पर मौन , झूठ की बजती ताली ।
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खूब किया शृंगार, लगाई बिन्दी लाली ।
घरवाली को छोड़ ,सजन को भायी साली ।
रखना लेकिन याद ,काम अपने ही आते ।
ऐसे झूठे साथ , बाद में बहुत रुलाते ।
सुशील सरना / 22-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 22, 2022 at 4:53pm — 6 Comments
रोला छंद .....
मात्र नहीं संयोग ,जीव का सुख-दुख पाना ।
सीमित तन में श्वास,लौट के सब के जाना ।
भोर-साँझ आभास, जगत है झूठी आशा ।
आदि संग अवसान, ईश का अजब तमाशा ।
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समझो मन की बात, रात है सजनी छोटी ।
आ जाओ कुछ पास, प्रेम की सेकें रोटी ।
यौवन के दिन चार, न लौटे कभी जवानी ।
लिख डालें फिर आज,प्रेम की नई कहानी ।
सुशील सरना / 21-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 21, 2022 at 1:00pm — 5 Comments
सभी मित्रों को होली की हार्दिक बधाई
कुछ चुटकियाँ होली पर ....
पत्नि कर दे न
तो बोलो कैसे होगी हाँ
जरा तो सोचो यारा
जोगी रा सा रा रा रा
पत्नी कर दे हाँ
तो बोलो कैसे होगी न
जरा तो सोचो यारा
जोगी रा सा रा रा रा
कैसी लगती भंग
लगे न जब तक नार को रंग
जरा तो सोचो यारा
जोगी रा सा रा रा रा
नैन नैन से रार करे
कैसे लगायें रंग
जरा तो सोचो यारा
जोगी रा सा रा रा रा…
Added by Sushil Sarna on March 18, 2022 at 1:25pm — 2 Comments
होली मुक्तक (सरसी छंद )......
बार - बार पिचकारी ताने, मारे भर -भर रंग ।
भीगी मोरी अँगिया चोली , भीगे सारे अंग ।
मार शरम के मर-मर जाऊँ,लाल हो गए गाल -
बेदर्दी को लाज न आवे, छेड़े पी कर भंग ।
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जुल्मी कितना जुल्म करे है, देखो पी कर भंग ।
मदहोशी में रंग लगावे , खूब करे फिर तंग ।
अंग- अंग से छेड़ करे वो,तनिक न आवे लाज -
बार - बार वो रंग लगावे , खूब करे हुडदंग …
Added by Sushil Sarna on March 15, 2022 at 1:30pm — 4 Comments
दोहा मुक्तक
1
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
2.
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, ट्रेक्टर ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
सुशील सरना / 14-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 14, 2022 at 3:14pm — 2 Comments
दोहा सप्तक ....
नारी अब सक्षम हुई, मुक्त हुई परवाज़ ।
विश्व पटल पर गूँजती, नारी की आवाज़ ।।
नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार ।
बदले में उसको मिला, धोखे का संसार ।।
चूल्हा चक्की छोड़ दी, तोड़े बंधन तार ।
अब नारी ने रच दिया, एक नया संसार ।।
अम्बर को छूने चली, कल की अबला नार ।
नर के पौरुष का हुआ, तार- तार संसार ।।
नारी ताकत पुरुष की , स्वयं नहीं कमजोर ।
अनुपम कृति वो ईश की, वो आशा की भोर…
Added by Sushil Sarna on March 12, 2022 at 7:43pm — 3 Comments
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