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दिनेश कुमार's Blog – April 2018 Archive (3)

ग़ज़ल -- शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर // दिनेश कुमार

221---2121---1221---212

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तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर

तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर

.

तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा

भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर

महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को

आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर

.

ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में

पहले उदर की आग बुझाने की बात कर

.

मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल

ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर

.

बस पैरहन…

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Added by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:30am — 18 Comments

ग़ज़ल -- जो काम बस का नहीं, उसका इश्तिहार किया // दिनेश कुमार

1212----1122----1212----112/22

जो काम बस का नहीं, उसका इश्तिहार किया

यही तो काम सियासत ने बार बार किया

तमाम अहले-चमन भी सज़ा के भागी हैं

अगर उक़ाब ने गोरैया का शिकार किया

उन्हें तो शौक़ था वादों पे वादे करने का

और एक हम थे कि वादों पे ए'तिबार किया

ये कौन आया है साहिल से लौट कर प्यासा

ये किसकी प्यास ने दरिया को शर्मसार किया

मुक़ाम उनको ही हासिल हुआ है दुनिया में

जिन्होंने राह की दुश्वारियों को पार किया

जो इसके साथ न चल पाया रह…

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Added by दिनेश कुमार on April 18, 2018 at 9:39am — 15 Comments

ग़ज़ल -- तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था // दिनेश कुमार

221 - - 2121 - - 1221 - - 212

तृष्णाओं के भँवर में फँसा बद-हवास था

सब कुछ था मेरे पास मगर मैं उदास था

जीवन के मयकदे में कुछ हालत थी यूँ मेरी

होंठों पे प्यास हाथ में खाली गिलास था

हर आदमी के ज़ेह्न में रक़्साँ थी बेकली

दुनियावी ख़्वाहिशात का हर कोई दास था

आह्वान बंद का था सियासत के नाम पर

होगा नहीं वबाल फ़क़त इक क़यास था

भगवे हरे में बँट गया फिर शह्रे-दुश्मनी

चारों तरफ़ इक आलमे-ख़ौफ़ो-हिरास था

तूफ़ाँ में रात जिसका सफ़ीना बचा…

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Added by दिनेश कुमार on April 8, 2018 at 6:25pm — 12 Comments

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