For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – April 2016 Archive (6)

जीवन पथ में, तेज़ धूप, तुम घने पेड़ की छाया माँ-ग़ज़ल

22-22-22-22-----22-22-22-2

जीवन पथ में, तेज़ धूप, तुम घने पेड़ की छाया माँ।

इस मन्दिर सा पावन दूजा, मन्दिर कहीं न पाया माँ।।



जब भी दुख के बादल छाये, मन तूफ़ाँ से घिरा कभी।

इस चेहरे पर दर्द की रेखा, और कौन पढ़ पाया माँ।।



तुम अपने सारे बच्चों  को, कैसे बांधे रखती हो।

जबकी सबके अलग रास्ते, फिर भी एक बनाया माँ।।



विह्वल व्यथित हृदय की धड़कन, ज्यूँ अमृत पा जाती है।

जब भी सर पर कभी स्नेह से, तुमने हाथ फिराया माँ।।



जब भी दर्द यहाँ उट्ठा है, चोट कहीं…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 30, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

जगना कहाँ ज़रूरी है?

22-22-22-22----------2212-1222



सोते रहिये, किसने टोका, जगना कहाँ ज़रूरी है?

ढ़ोते रहिये, जीवन बोझा, रखना कहाँ ज़रूरी है?



क्या मतलब है, और किसी से, अपने रहें सलीके से।

लिखते रहिये, इन पन्नों से, हटना कहाँ ज़रूरी है।।



घर से बाहर, भूले से भी, मेहनत ज़रा न करियेगा।

चिंतन करिये यूँ ही, कुछ भी, करना कहाँ ज़रूरी है।।



राहों में घायल को छोड़ें, व्याकुल पड़े ही रहने दें।

कलयुग में सिद्धार्थ का बुद्धा,बनना कहाँ ज़रूरी है।।



रावण…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 28, 2016 at 8:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल-इस्लाह के लिये

22-22-22-22-22-22-222

मेरे शब्दों को तुम अपनी ख़ुश्बू सा महका दो तो।

मेरे छंदों को तुम अपनी पायल सा खनका दो तो।।



ये जो मनमोहक सी तेरी चाल में इक चञ्चलता है।

अधरों से छू कर ग़ज़लों को, हिरनी ज़रा बना दो तो।।



रेशम सी आवाज़ का ज़ादू, इन भावों में जगा ज़रा।

सुर सरगम का गहना इनको, प्रिये आज पहना दो तो।।



हर्फ़ बिछे हैं कागज़ पर सब, प्राण हीन तन के जैसे।

इन काली रेखाओं को भी, ज़िंदा आज बना दो तो।।



क्यों कहती हो प्रीत नहीं जब, झूठ बोलना नहीं… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 25, 2016 at 11:02pm — 15 Comments

शेक्सपीयर के नाम-एक सॉनेट

अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।

स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।

अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।

एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।



तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।

चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।

दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।

क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।



जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।

कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।

हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।

मेरा नाम तलाश,…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 24, 2016 at 9:00am — 2 Comments

तुम गए तो प्राण का जाना लिखा

तुम गए तो प्राण का जाना लिखा

बिन तेरे निःश्वांस हो जाना लिखा।

देखिये ना प्रेम की जादूगरी

स्वयं को मीरा तुम्हें कान्हा लिखा।।1।।

जब कभी भी पूर्णिमा का चाँद निकला

खिडकियों से झांककर आगे चला।

भाग कर छत पर गया देखा तुम्हें

और झट से तेरा आ जाना लिखा।।।।2।।

एक भीनी सी सुरभि जब भी कभी

मेरे कमरों की हवाओं में घुली।

मैंने खुद को फिर मचलता देखकर

रात रानी का महक जाना लिखा।।3।।

जब कभी अवसाद सागर में मेरी



नाव मन की…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 14, 2016 at 6:35pm — 10 Comments

निगाहें- ग़ज़ल

22 122 22 122
जबसे हैं तुमसे, उलझीं निगाहें।
इक दूसरे में, डूबीं निगाहें।।

मौका लबों को देती नहीं हैं।
बातें करें खुद, अपनीं निगाहें।।

दुनिया की कोई परवा नहीं है।
मिलकर झपकना, भूलीं निगाहें।।

जब भी हुई हैं, तुमसे जुदा ये।
तूफ़ाँ उठा औ' बरसीं निगाहें।।

अब छोड़कर के, जाना नहीं तुम।
बस ये ही तुमसे, कहतीं निगाहें।।

मौलिक-अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 12, 2016 at 3:44pm — 2 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service